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________________ जहाँ उत्तम प्रकार के लोग रहते हो ऐसे पड़ोस में घर का निर्माण कराना अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है। यदि आपके निवास के आस-पास रहने वाले पड़ोसी उत्तम व्यवहार, उत्तम स्वभाव और धर्म के प्रति रूचि वाले नहीं हो तो आपके और आपकी सन्तान के जीवन में विपरीत संस्कार उत्पन्न होने की सम्भावना में वृद्धि हो जाती है। पूर्वोक्त तथ्य के अनुसार हमारा जीव निमित्तवासी है। इसे बुरे निमित्त प्राप्त होने पर वह बुरा होता जाता है। और यदि इसे उत्तम निमित्त प्राप्त हो जाये तो यह उत्तम भी हो सकता है। पड़ोसी के संस्कारों का सन्तानों पर प्रभाव - पडोसी के ससंस्कारों एवं कसंस्कारों का अत्याधिक प्रभाव सन्तानों पर होता प्रतित होताहै। वर्तमान काल में विशेषतया बम्बई जैसे बड़े शहरों में कोस्मोपोलिटन्ट भवनों में एक फ्लैट में कोई जैन रहता हो तो उसके समीपस्थ फ्लैट में कोई मुसलमान रहता होगा और उसके दूसरी ओर कोई महाराष्ट्रीय अथवा तमिल परिवार रहता होगा। इन समस्त प्रकार के परिवारों के संस्कारों का मिश्रण आपकी सन्तान में अवश्य होता है। माता-पिता आदि वयस्क व्यक्ति तो कदाचित् संयम रख सकें, परन्तु बालकों को आप कब तक रोकेंगे ? आपका छोटा बच्चा आपके पड़ोसी मुसलमान के घर जाकर भी कोई मांसाहारी वस्तु चखकर आ जाये तो क्या आपको सहन होगा? यदि आप बालक को पड़ोसी मुसलमान के घर जाने से रोकेंगे तो कदाचित उस पड़ोसी को बुरा भी लग सकता है "क्या हम नीच जाति के मनुष्य हैं ? आप छोटे बच्चों को हमारे घर आने से क्यों रोकते हैं?" इस प्रकार की बात उसके मन में आयेगी। इसकी अपेक्षा ऐसे पड़ोस में फ्लैट लेना ही नहीं यही उत्तम है। कदाचित् पड़ोसी मुसलमान न होकर वैष्णव ब्राह्मण आदि हो और यदि आप कन्दमूल आदि नहीं खाते हों, परन्तु आपके बालक उस पड़ोसी के घर बार-बार जाते-आते होने से आलू, प्याज, लहसन आदिखा जाने की पूर्ण सम्भावना है। ऐसी परिस्थिति में संस्कार बनाये रखना अत्यन्त ही कठिन हो जाता है। अत: यथा सम्भव जैन लोगों को जैन एवं अपने ही गच्छ अथवा सम्प्रदाय को मानने वाले पड़ोसी हो ऐसा ही घर पसन्द करना चाहिये। यदि इस प्रकार का जैन पडोसी उपलब्ध न हो सके तो वैष्णव अथवा ब्राह्मण जैसे शुद्ध शाकाहारी मनुष्यों का ही पड़ोस खोजना चाहिये। जैन पड़ोसी खोजने में कदाचित् अन्य कोई अनुकूलता अथवा सुविधा प्राप्त न भी हो तो चला लेना चाहिये, परन्तु जैन आदि का उत्तम पड़ोस प्राप्त करने का ही प्रयास करना चाहिये। जैन बालिका का वैष्णव के साथ प्रणय - ___ भक्ष्य-अभक्ष्य विषयक खान-पान की शुद्धि बनाये रखने के लिये जिस प्रकार जैन आदि का पड़ोस महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार से उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात ध्यान देने योग्य है। इस eacococore 106 90GOOG0E 106
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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