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इस पर रामकृष्ण ने शिवनाथ को बुला कर कहा "शिवनाथ' तु मेरी आलोचना करता है, परन्तु तू यह बात अच्छी तरह नहीं जानता। हम दोनों के लिये अब ब्रह्मचर्य-पालन इतना सहज हो गया है कि अब वासना की ओर मुड़ना हमारे लिये पूर्णत: कठिन है। अब्रह्म के लिये आवश्यक कामवासना हम दोनों में से सर्वथा विलीन हो गई है।'
सहज ब्रह्मचारी दम्पति के चरणों में शिवनाथ का मस्तक भावपूर्वक नत हो गया।
स्त्री रूपी प्रबल निमित्त के समीप रहने पर भी सहज ब्रह्मचर्य तो राम कृष्ण जैसे विरले ही पाल सकते हैं। अन्यथा सामान्यतया जीव अशुभ निमित्त प्राप्त होते ही पतन की ओर उन्मुख हो जाते
अत:शील, सतीत्व आदि की रक्षा के लिये विरोधी अधिक द्वार रूपी कुनिमित्तों से घर को दूर रखना चाहिये। जिस प्रकार घर के अनेक द्वार नहीं होने चाहिये, उसी प्रकार के घर के केवल एक ही द्वार भी नहीं होना चाहिये।
क्योंकि यदि केवल एक ही द्वार हो तो अग्नि आदि लगाने पर उसमें से निकल कर बचना भी कठिन हो जाता है। 2. अशुद्ध स्थान पर घर नहीं होना चाहिये -
___घर का निर्माण उचित स्थान पर कराना चाहिये। जिस भूमि में हड्डियां आदि गड़ी हुई हो, वहां घर का निर्माण नहीं कराया जाता, क्योंकि ऐसी अशुद्ध भूमि में रहने से सुख एवं शान्ति नष्ट हो जाती है।
__ जहाँ घास, पौधे एवं अन्य प्रशस्त वनस्पति उगती हो तथा जहाँ की मिट्टी सुगन्धित हो, श्रेष्ठ हो वहाँ घर का निर्माण कराया जा सकता है।
जहाँ स्वादिष्ट जल निकलता हो, जहाँ निधान आदि होने की सम्भावना हो अथवा पहले कभी निधान आदि निकले हों वे स्थान शुभ जाने जाते हैं। ऐसे स्थानों पर घर का निर्माण काराना चाहिये। 3. घर अत्यन्त प्रकट अथवा अत्यन्त गुप्त नहीं होना चाहिये -
अत्यन्त प्रकट (खुले) स्थान में घर नहीं होना चाहिये। अत्यन्त प्रकट का अर्थ यह है कि जिस के आसपास में अन्य घर नहीं हो। यदि इस प्रकार का घर हो तो चोर आदि का भय व्याप्त होने पर बचाने वाला कोई नहीं मिलता, कोई सहायक भी नहीं होता।
अत्यन्त गुप्त स्थान में भी घर नहीं होना चाहिये अर्थात् अत्यन्त भीड़-भाड़ में घर नहीं होना चहिये, क्योंकि उस घर की शोभा प्रतीत नहीं होती और अग्नि आदि का प्रकोप होने पर बाहर निकलने में भी अत्यन्त कठिनाई होती है। 4. उत्तम पड़ोस में घर होना चाहिये -