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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ विहार करते हुए अनुक्रमसे गुजरात राज्यमें गांधीनगर के पास अडालज गांवमें पधारे । तब जिनमंदिर के पासमें एक सद्गृहस्थ ने उनको 'मत्थएण वंदामि' 'सुखशाता' कहते हुए पूछा 'महाराज साहब ! आप प्रवचन देंगे?'
म.सा.ने कहा - 'आप आयोजन करेंगे तो मुझे प्रवचन देने में कोई हर्ज नहीं है।
. उस भाई ने कहा - 'म.सा. ! व्याख्यान का आयोजन तो श्रावक लोग ही कर सकते हैं ।'
'क्या आप श्रावक नहीं हैं ?' म.सा.ने आश्चर्य के साथ पूछा । 'मैं ब्राह्मण हूँ' सामने से प्रत्युत्तर मिला । . 'तो फिर आपको जैन साधु के प्रवचन श्रवण का इतना रस कैसे जाग्रत हुआ है?' म.सा. ने जिज्ञासावश पूछ । ब्राह्मण : 'म.सा. ! आपके प्रश्न का प्रत्युत्तर देने से पहले मैं.
आपको एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ । क्या मैं पूछ सकता
म.सा. : 'खुशीसे पूछे ।' ब्राह्मण : आपको मेरी उम्र कितनी दिखाई देती है ?' म.सा. : 'होगी ५०-५५ साल के आसपास आपकी उम्र; मगर इस
प्रश्न का मेरे उपरोक्त प्रश्नसे क्या संबंध है ? ब्राह्मण : 'संबंध है, इसीलिए तो आपश्री को मुझे यह प्रश्न पूछना
पड़ा है । महाराज साहब ! ८४ का चक्कर पूरा करके ८५ . वें वर्षमें इस देहका प्रवेश हुआ है ! ' 'तो ऐसे आश्चर्यप्रद स्वास्थ्य का राज बतायेंगे ?' म.सा.ने
अत्यंत आश्चर्य के साथ पूछा । ब्राह्मण : 'यह सब प्रताप एवं प्रभाव जैन धर्म का ही है । म.सा. : 'कैसे, ? सविस्तर समझाएँ ।' ब्राह्मण : 'सुनिए । मेरी उम्र जब १४ सालकी थी तब हमारे गाँवमें