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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ पू. मुनिराज श्री ओंकारविजयजी म.सा. एक श्रावक को ५०० आयंबिल करने की प्रेरणा दे रहे थे, उसे सनकर वनमालीदासभाई ने एकांतरित ५०० आयंबिल का प्रारंभ कर दिया एवं निर्विजतासे परिपूर्ण भी किये ।
__ जीवदयाप्रेमी वनमालीदासभाई ने तेउकाय जीवों की निरर्थक विराधनासे बचने के लिए आजीवन अपने हाथ से इलेक्ट्रीक लाइट चालु न करने की प्रतिज्ञा ली है .....
इतना ही नहीं मगर कुछ साल पहले रसोई करने में होती हुई अग्निकाय जीवों की विराधनासे बचने के लिए केवल चने के चूर्ण के साथ घी गुड़ मिश्रित करके अथवा मुरमुरोंके साथ नमक मिर्च मिश्रित करके उसीसे अवड्ड एकाशन करने का प्रयोग १०८ दिन पर्यंत किया था।
कमसे कम चीजों से जीवन जीनेवाले वनमालीदासभाई पाँवोंमें जूते भी नहीं पहनते । गर्मी की ऋतुमें कभी दोपहर के समयमें धर्मशाला के बाहर जानेका प्रसंग उपस्थित होता है, तब भी वे जान बूझकर छाया का त्याग करके नंगे पाँव धूपमें ही चलते हैं। ऐसा करने का कारण बताते हुए वे कहते हैं कि "गर्मी के दिनोंमें कई प्रकार के कीड़े मकोड़े आदि जीवजंतु छायामें विश्रांति लेते हैं और हमारे छायामें चलने से उन जीवों की हिंसा होने की अधिक संभावना रहती है। इसलिए हमें भले कष्ट सहन करना पड़े, मगर दूसरे जीवों को हमारे निमित्त से थोड़ी भी तकलीफ नहीं पड़नी चाहिए ।" कैसी उदात्त विचारधारा ! कैसा उत्तम जीवन ....
प्रतिदिन उभय काल प्रतिक्रमण एवं जिनपूजा करनेवाले वनमालीदासभाई हररोज चार सामायिक अचूक करते हैं । सं. २०५० में पू. आचार्य श्री श्रेयांसचन्द्रसूरिजी के चातुर्मासमें किसी मुनिराजश्री की विशिष्ट तपश्चर्या के पारणे का लाभ लेने के लिए सामायिक की बोली बोलायी जा रही थी। तब वनमालिदासभाई ने पांच हजार सामायिक तक बोली बोली थी। उसके बाद किसी श्रावकने उन्हें आगे न बोलने के लिए एवं दूसरे श्रावक को लाभ देने के लिए इशारा किया, इसलिए वे चुप हो गये। दीपचंदभाई नामके श्रावकने आदेश लेकर पारणे का लाभ लिया, फिर भी वनमालीदासभाई ने ३ सालमें ६००० सामायिक करनेका