________________
तस्वीर परिचय
(१) वर्धमान आयंबिल तपकी विश्वविक्रम रूप तपश्चर्या २८९ (१००
+ १०० + ८९) ओली के आराधक तपस्वी सम्राट, प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय राजतिलकसूरीश्वरजी म.सा. (बहुरत्ना वसुंधरा भाग-३, दृष्टांत नं. १८४)
| (२) बुढापे में साधना का प्रारंभ करके विशिष्ट आध्यात्मिक
अनुभूतियों को प्राप्त करनेवाले आत्म साधक श्री खीमजीभाई वालजी वोरा (कच्छ-नारायणपुर । हाल मुंबई-वसई) (बहुरत्ना
वसुंधरा भाग-२ दृष्टांत नं. ९१) (३) नवकार महामंत्र को सिद्ध करनेवाले श्री लालुभा मफाजी वाघेला
(ट्रेन्ट - गुजरात) (बहुरत्ना वसुंधरा भाग-१, दृष्टांत नं. ३)
(४) जैन धर्मकी आराधना एवं माता की सेवा के लिए अविवाहित
रहते हुए, तपस्वी, बाल ब्रह्मचारी, सरदारजी गुरु मोहिन्दरसिंहजी (पप्पुभाई अरोरा) (खड़की, पूना-महाराष्ट्र) (बहुरत्ना वसुंधरा भाग-१, दृष्टांत नं. २१)
(५) अनेक बच्चों को व्यावहारिक अध्ययन के साथ धार्मिक
अध्ययन कराते हुए दिलीपभाई बी. मालवीया (लोहार) (पिंडवाडा-राजस्थान) बहुरत्ना वसुंधरा भाग-१, दृष्टांत नं. ६८)