________________ 407 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 ऐसे व्यक्तियों को एवं संस्थाओं को तन-मन-धन से सहयोग देना यह अहिंसाप्रेमी आत्माओं का खास कर्तव्य है / सुज्ञेषु किं बहुना ! 175 बीमार कबूतरों की सेवा करती हुई, जीवदयाप्रेमी सुश्राविका श्री स्तनबाई राघवजी गुहका आज एक और स्वार्थांधता के कारण प्रतिदिन लाखों-करोड़ों अबोल पशु-पक्षीओं की बेरहमी से कत्ल होती है, तब दूसरी और अबोल पशु-पक्षीओं को अपने स्वजन समान मानकर निःस्वार्थभाव से उनकी सेवा करनेवाले भी कुछ मानवरत्न इस विश्व में विद्यमान हैं / ऐसे निःस्वार्थ सेवाशील आराधकरत्नों में कच्छ-बारोई गाँव के निवासी एवं हाल में मुंबईमझगाँव में रहती हुई सुश्राविका श्री रतनबाई राघवजी गुटका (उ.व. 57) भी खास अनुमोदनीय है। ___ आज से 37 साल पूर्व उनकी शादी हुई तब से लेकर आज तक वे निःस्वार्थभाव से करुणाप्रेरित होकर बीमार कबूतरों की सेवा करती हैं। __37 साल पहले उनकी पड़ोसन ने उनको एक बीमार कबूतर दिया था / उसकी सूश्रूषा करते हुए रतनबाई को अंत:प्रेरणा हुई और उन्होंने अपने घरमें खास कबूतरों के लिए 2 अलमारियों की व्यवस्था की है जिसमें कुल 24 आले (विभाग) हैं / / कटी हुई पंखवाले, खंडित पैरवाले, मर्दित गरदनवाले, नेत्रहीन या पक्षाघात युक्त ऐसे बीमार कबूतरों को खास अपने घरमें रखकर उनकी हर तरह की सेवा करती हुई सुश्राविका श्री रतनबाई को शांति के दूत ऐसे अबोल पक्षीओं की जो मूक दुहाई प्राप्त होती है, उससे उनको अत्यंत शांति और प्रसन्नता का अनुभव होता है / प्रतिमाह एकाध बार वे अपने खर्च से पक्षीओं के चिकित्सक को बुलाती हैं और जरूरतमंद कबूतरों की चिकित्सा उनके द्वारा भी करवाती हैं / बाकी तो 37 वर्षों के अनुभवों के कारण अधिकांश शुश्रूषा तो वे