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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ पूज्य गुरुदेव गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा.) को ५ साल तक पंडितवर्य श्री हरिनारायण मिश्र (व्याकरण-न्याय-वेदान्ताचार्य) के पास संस्कृत-प्राकृत व्याकरण एवं षड्दर्शन आदि का अध्ययन करवाकर, आशीर्वाद पूर्वक वि.सं. २०३१ में महा सुदि ३ के दिन कच्छ-देवपुर गाँव में संयम के पथ में प्रस्थान कराया ! जो आज अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न के रूपमें ४५ आगमों का अध्ययन करके लगातार ५ एवं ४ महिनों के मौन सह नवकार जप इत्यादि द्वारा आत्मसाधना के साथ साथ तात्त्विक प्रवचन, वाचनाएँ एवं 'जिसके दिल में श्री नवकार उसे करेगा क्या संसार ?' तथा 'बहुरत्ना वसुंधरा भा - १-२-३-४' इत्यादि अत्यंत लोकप्रिय किताबों के संपादन-लेखन द्वारा परोपकार एवं शत्रुजय तथा गिरनारजी महातीर्थ की सामूहिक ९९ यात्राएँ और अनेक छ'री' पालक संघो में निश्रा प्रदान करने द्वारा अनुमोदनीय शासन प्रभावना कर रहे हैं।
(२) सुपुत्री विमलाबहन को भी ५ साल तक योगनिष्ठा तत्त्वज्ञा प.पू. विदुषी सा.श्री गुणोदयाश्रीजी म.सा. के पास एवं पंडित श्री हरिनारायण मिश्र के पास ६ कर्मग्रंथ के अर्थ एवं षड्दर्शन आदि का अध्ययन करवाकर सुपुत्र मनहरलाल के साथ ही कच्छ-देवपुर गाँव में दीक्षा दिलायी, जो आज सा. श्री भुवनश्रीजी की शिष्या सा. श्री वीरगुणाश्रीजी के रूपमें उलसित भावसे तप-जप की अनुमोदनीय आराधना के साथ-साथ अनेक जिज्ञासुओं को सम्यक् ज्ञान की प्रसादी उदारदिल से प्रदान कर रही हैं।
(३) सुपुत्र दीपककुमार (हाल उम्र वर्ष ४४) को भी कच्छमेराउ में अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से संस्थापित जैन तत्त्वज्ञान विद्यापीठ में, ४ साल तक धार्मिक एवं संस्कृत का अध्ययन करवाकर धर्म में निपुण बनाया है। उनकी भी संयम स्वीकारने की तीव्र भावना होते हुए भी अपने माँ-बाप आदि की सेवा के लिए संसार में जलकमलवत् निर्लेपभाव से रहकर अपने प्रभुभक्तिमय ब्रह्मचारी जीवन द्वारा एवं श्री देव-गुरु की कृपासे स्वयंस्फूर्त सद्बोध के द्वारा अनेकानेक आत्माओं के जीवन में सम्यग्ज्ञान का प्रकाश फैलाकर