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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ .. सोना - तु झूठ बोलता है। तेरे पैदा होने के बाद हम सिद्धाचल गये ही नहीं ।
सिद्ध - मैं झूठ नहीं बोलता, सच कह रहा हूँ । सोना - यह कैसे हो सकता है ? सिद्ध - मैं कहता हूँ, मैंने उस प्रतिमा की पूजा की है । सोना - कब ? सिद्ध - पहले वाले जन्म में । सोना - पहले वाले जन्म में ! उस जन्म में तुम क्या थे ? सिद्ध - मैं तोता था । सोना - तुम कहाँ रहते थे ? सिद्ध - "सिद्धवड़' में। .
बचपन की सी बात समझ कर सोना ने इस वार्तालाप को और आगे नहीं बढाया । पर उसने मुझे और मेरे भाई साहब को यह सारी घटना सुनाई । हमारे प्रश्न करने पर बालक ने वही कथा दोहराई और उसके बाद उस पवित्र तीर्थ पर ले चलने के लिए हमारे पीछे पड़ा रहा । हमने उसे टालने के लिये कह दिया कि यात्रा में लगने वाले खर्च का प्रबन्ध होने पर चलेंगे । इस बीच वह बालक प्रतिदिन कुछ न कुछ बचाता रहा
और इस प्रकार उसने कुछ रूपये इकट्टे कर लिये । उन्हें सिद्धाचलजी में खर्च करने की दृष्टि से वह सावधानी से रखता रहा ।
सिद्धाचलजी के मार्ग में; तथा बालक की परीक्षा
१९११ की अंतिम तिमाही में मुझे दमे का गंभीर प्रकोप हुआ। मेरे डोक्टरोंने हवा-पानी बदलने की सलाह दी । मैं प्रात:काल ही काठियावाड़ फास्ट पैसेंजर से सिद्धाचलजी के मार्ग पर वढ़वाण के लिए रवाना हो गया। अब बालक उस पवित्र तीर्थ की यात्रा करने की सम्भावना से बहुत प्रसन्न था।
रास्ते में पालघर आता था । वहाँ कुछ पहाडियाँ हैं । बालक के