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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ इस तरह तपोमय, समाधिमय और समतामय जीवन द्वारा वर्तमान युगमें एक नया ही कीर्तिमान स्थापित करके श्री रतिलालभाईने बिदा ली। उनकी आदर्श एवं आश्चर्यप्रद तपःसिद्धि को कोटिशः नमन ।
रतिलालभाई के सुपुत्र धीरुभाई वर्तमान में विद्यमान हैं । वीरमगाम के कोई भी श्रावक-श्राविका दीक्षा लेते हैं उनकी अनुमोदनार्थ प्रतिमाह दीक्षातिथि के दिन वे आयंबिल करते हैं । इसके अलावा भी वे अनेकविध तपश्चर्या यथाशक्ति करते रहते हैं ।
पता : धीरुभाई रतिलालभाई खोडीदास मु.पो. वीरमगाम, जि. अमदाबाद (गुजरात) पिन : ३८२१५०
लगातार दश हजार से अधिक आयंबिल | (१४० ओली) के परम तपस्वी श्राध्दवर्य
श्री दलपतमाई बोथरा मूलत: राजस्थान में नागौर में दि. १५-९-१९३६ के दिन जन्मे हुए और कई वर्षों से मद्रास में रहते हुए परम तपस्वी श्राद्धवर्य श्री दलपतभाई बोथरा (उम्र वर्ष ६३) ने लगातार दश हजार से भी अधिक आयंबिल (लगातार १४० ओलियाँ) की तपश्चर्या करके एक अनूठा विश्वविक्रम प्रस्थापित किया है ।
विशेषतः उल्लेखनीय बात यह है कि सामान्यतः वर्धमान आयंबिल तपकी १०० ओलियाँ परिपूर्ण होने के बाद यदि तपस्वी को वर्धमान तप की ही आराधना आगे चालु रखनी होती है तो वे पुनः वर्धमान तप की नींव (१ से ५ ओली लगातार) डालकर दूसरी बार ६-७-८ इत्यादि ओलियाँ करते हैं। कुछ विरल तपस्वियोंने ऐसा न करते हुए, १०० ओलियों के बाद १०११०२-१०३ इत्यादि क्रमसे प्रायः १०८ या १११ ओलियाँ की हैं । मगर परमतपस्वी सुश्रावक श्री दलपतभाईने १०१-१०२-१०३ इत्यादि क्रमसे लगातार १४० ओलियाँ करके सचमूच एक बेमिसाल अद्वितीय और अद्भूत कीर्तिमान प्रस्थापित किया हैं।