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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
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मूलत: मोरबी (सौराष्ट्र) के निवासी किन्तु हालमें वर्षों से मलाड़ (मुंबई) में रहते हुए और जसुभाई के नामसे हजारों विद्यार्थीओं के प्रिय श्री जसवंतभाई (उ.व. ६२) सचमुच जैन समाज के लिए गौरव रूप हैं । आज तक १३० से अधिक साधु साध्वीजी भगवंतों को एवं मुमुक्षओं को B.A. तथा M.A. समकक्ष हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के विविध विषयों का निःशुल्क ज्ञानदान दिया है । ६० प्रतिशत से अधिक गुणांक प्राप्त करनेवाले अनेक मध्यम वर्गीय एवं श्रीमंत विद्यार्थीओं से वे अपने लिए कुछ भी नहीं लेते हैं किन्तु एक गरीब विद्यार्थी को उच्च अभ्यास के लिए फी देने की वे सलाह देते हैं । मलाड़ सेन्ट्रल स्कूल में आदर्श शिक्षक के रूपमें उनकी प्रतिष्ठा सभी के मानस पर अंकित है ।
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आज जब स्कूल- कोलेजों के आचार्य (प्रिन्सीपाल) के पद पर रहे हुए कितने अध्यापकों के जीवनमें आचार पालन के विषय में बहुत कमी दृष्टिगोचर होती है तब उनसे अत्यंत भिन्न जसवंतभाई का जीवन सदाचार की सुवास से अत्यंत मघमघायमान दिखाई दे रहा है । २९ वर्ष की भर युवावस्था में ही ब्रह्मचर्य व्रत का स्वेच्छा से पालन करते हुए उन्होंने दूध एवं घी की समस्त वस्तुओं का हंमेशा के लिए त्याग कर दिया है । उपवास से, आयंबिल से एवं एकाशन से इस तरह तीन प्रकारों से बीस स्थानक तप की आराधना उन्होंने ३ बार की है । लगातार ११ उपवास, संलग्न ७ छठ्ठ तप, २४ तीर्थंकरों के चढते-उतरते क्रम से ६२५ एकाशन इत्यादि अनेक प्रकार की तपश्चर्या से उनका जीवन देदीप्यमान हो रहा है । प्रतिमाह १० पर्वतिथियों में वे प्रायः एकाशन करते हैं । उनकी धर्मपत्नी सुश्राविका नीताबहनने भी एकांतरित ५०० आयंबिल और वर्षीतप की आराधना की है ।
जसवंत भाई का जन्म स्थानकवासी (छोटा संघाणी - गोंडल संप्रदाय) जैन परिवार मैं हुआ है फिर भी वे तीर्थस्थानों में वासक्षेप से जिनपूजा करते हैं । हररोज जिनमंदिर में जाकर प्रभुदर्शन करते हैं । पर्वतिथियों में पाँच जिनमंदिरोमें जाकर प्रभुदर्शन करते हैं । उन्होंने शत्रुंजय महातीर्थ की