________________
२७२
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि में भी कई विधिकार निस्पृह भाव से विधि-विधान एवं पूजनादि अच्छी तरह से करवाते हैं उन सभी की भी हार्दिक अनुमोदना । उनमें से कुछ विधिकारों के दृष्टांत इसी पुस्तकमें पूर्वमें दिये गये हैं।
बाल श्रावक रनों के अद्भुत पराक्रमोंकी गौरवगाथा
छोटे पौधे को चाहें वैसा मोड़ दिया जा सकता है, कोरी स्लेट के उपर चाहें वेसा चित्र अंकित किया जा सकता है, कार्बन पेपर के उपर जैसा लिखते हैं वैसा ही नीचे के पन्ने पर लिखा जाता है... उसी तरह छोटे बच्चों में हम चाहें वैसे संस्कार डाल सकते हैं।
इस जगत में जो भी महापुरुष हुए हैं उनके जीवन चरित्र देखने से पता चलता है कि उनकी महानता की नींव में उनकी गर्भावस्था में या बाल्यावस्था में माता-पिता-अध्यापक या सद्गुरु आदि द्वारा किया गया सुसंस्कारों का सिंचन ही कारण रूप होता है।
इस दुनिया में शरीर धारण करते हुए प्रत्येक बच्चे में महान बनने की संभावना छिपी रहती है । फिर भी उनमें से कुछ महापुरुष बनते हैं
और कुछ शयतान जैसे भी बनते हैं उसमें मुख्यतया जिम्मेदार उनकी बाल्यवस्थामें मिले हुए शुभ या अशुभ संस्कार ही होते हैं।
आईए, हम सुसंस्कारों को संप्राप्त बाल श्रावकरत्न कैसे अद्भुत पराक्रम दिखा सकते हैं उनके कुछ दृष्टांत देखें और अपने आश्रित बच्चों में भी वैसे सुसंस्कारों का सिंचन करने के लिए संकल्प करें ।
(१) ढाई सालकी उम्र के बच्चे ने किया अठ्ठम तप ।
वि. सं. २०४३ में वलसाड़ (गुजरात) में अध्यात्मयोगी प. पू. आ. भ. श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज श्री