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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
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कारण उनको वहाँ का भोजन स्वीकारना पड़ता था । गिरनारजी की ९९ यात्रा के दौरान कुछ ही यात्राएँ बाकी थीं तब अचानक टोकरसीभाई के पाँव में ऐसी भयंकर पीड़ा होने लगी कि एक भी यात्रा करनी असंभव हो गयी । आखिर उनको मुंबई जाना पड़ा । वहाँ उनको डोक्टर ने ओपरेशन करवाने की राय दी, मगर दृढ मनोबल एवं सुदृढ श्रद्धालु टोकरसीभाई ने ओपरेशन करवाने के बदले में अठ्ठम तप पूर्वक नेमिनाथ भगवान को प्रार्थना की और बाकी की यात्राएँ पूरी करने के लिए फिर से गिरनारजी गये और बिना किसी प्रकार की सहायता लिए ही ९९ यात्राएँ परिपूर्ण कीं ।
(८) एक ही साल में समेतशिखरजी, सिद्धगिरिजी और गिरनारजी महातीर्थ की ९९ यात्राएँ कीं ।
(९) वि. सं. २०५५ में एकांतरित ५०० आयंबिल की तपश्चर्या के साथ श्री शत्रुंजय गिरिराज की ६ कोसीयं प्रदक्षिणा की ९९ यात्राएँ कीं, यह शायद रेकोर्ड रूप आराधना है । आज दिन तक किसीने भी ६ कोसीय प्रदक्षिणा की ९९ यात्राएँ की हों ऐसा सुनने में नहीं आया है ।
(१०) १०८ पार्श्वनाथ भगवान के संलग्न १०८ अठ्ठम किये । प्रत्येक अठ्ठम में उन उन पार्श्वनाथ भगवान के नाम मंत्र की १२५ मालाओं का जप करते थे । टोकरसीभाई हररोज रात को ८-३० बजे सोते हैं और १२-३० बजे जाग जाते हैं । बाद में जप, प्रतिक्रमण आदि आराधना में ही शेष रात्रि व्यतीत करते हैं । दिन को भी सोते नहीं हैं । हर अठ्ठम के तीसरे दिन प्रायः संपूर्ण रात तक वे जागते ही रहते हैं । ऐसी विशिष्ट आराधना के प्रभाव से उनको कई बार अद्भुत स्वप्न आते हैं । कई बार आदिनाथ दादा का दर्शन स्वप्न में होता है, हृदय आनंद से झुम उठता है ।
(११) तीनों उपधान किये हैं ।
(१२) बीस स्थानक की २० ओलियाँ परिपूर्ण हुई हैं । (१३) आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया है । (१४) भव आलोचना द्वारा आत्मशुद्धि कर ली है ।