________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
२४१
कारण सिद्धचक्र पूजन नहीं हो सकता है तब तक वे पानी भी नहीं पीते । कैसी अद्भुत भक्तिनिष्ठा ।
•
हररोज रात को २.३० से ५.३० बजे तक सामायिक पूर्वक जप और अरिहंत परमात्मा का सालंबन ध्यान और प्रातः ७ से १० बजे तक जिनमंदिर में लघुसिद्धचक्र पूजन करने के बाद महाप्रभावशाली श्री वर्धमान शक्रस्तव ( श्री सिध्धसेन दिवाकरसूरिजी के उपर प्रसन्न होकर सौधर्मेन्द्र ने दिया हुआ भक्ति गर्भित स्तोत्र, जिसमें श्री अरिहंत परमात्माकी २७३ विशिष्ट विशेषणों से अद्भुत स्तवना की गयी है ) का पाठ करते हैं और उस स्तव के मूल मंत्र 'ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमः ' की २५ माला का जप करते हैं । उनके घर के प्रत्येक सदस्य भी श्री वर्धमान शक्रस्तव का हररोज पाठ करते हैं । ( वर्धमान शक्रस्तव का नियमित पाठ करने की भावना रखते हुए आराधकों के लिए उसकी सार्थ पुस्तिका 'श्री कस्तुर प्रकाशन ट्रस्ट' - मुंबई. दूरभाष : ४९३६२६६ से प्राप्त हो सकेगी 1 )
आजीवन कमसे कम बिआसन का पच्चक्खाण करने की बाबुभाई की प्रतिज्ञा है । विशिष्ट आत्मसाधना के लिए सालमें एकाध महिने तक गिरनारजी महातीर्थ में सेसावन (सहसाम्रवन) के पवित्र शांत वातावरण में वे रहते हैं ।
वि. सं. २०१३ में प्रथम बार प.पू. पन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. के दर्शन होते ही बाबुभाई का मन मयूर नाच उठा । घीरे घीरे सत्संग करते हुए एक दिन उन्होंने पूज्य पन्यासजी महाराज के पास 'आत्मानुभव' कराने के लिए प्रार्थना की । पूज्यश्रीने भी उनकी योग्यता को पिछान कर सर्व प्रथम तो व्यवसाय से निवृत्ति लेने की प्रेरणा दी जिसका उन्होंने तुरंत अमल किया । बादमें 'शिवमस्तु सर्व जगतः ' की भावनापूर्वक त्रिकाल १२ - १२ नवकार का स्मरण करने के संकल्प द्वारा आत्मसाधना का प्रारंभ हुआ । पूज्यश्री की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन के मुताबिक साधना करते हुए वि.सं. २०२९ में उपधान के दौरान उनको विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूति हुई । उसके बाद जो जो आध्यात्मिक
बहुरत्ना वसुंधरा - २-16