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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ की ९९ यात्रा करने का संकल्प करें यही शुभापेक्षा ।
रतिलालभाई के एक सुपुत्र चेतनभाई पालिताना में पन्नारूपा धर्मशाला में मेनेजर हैं । अन्य सुपुत्र मुंबई में रहते हैं ।
पत्ता : रतिलालभाई जीवराजभाई सेठ हठीभाई की धर्मशाला, दाणापीठ पालिताना (सौराष्ट्र) पिन : ३६४ २७०
[ १५ लाख रूपयोंके सोने-होरके उपकरण आदिसे १०७ जिनभक्ति करते हुए अपूर्व गुरुभक्त मुमुक्ष,
- विमलभाई जीवराजजी सिंघवी । मगध सम्राट श्रेणिक महाराजा प्रतिदिन भगवान श्री महावीर स्वामी जिस दिशामें विहार करते थे उस दिशा के सन्मुख सोने के नूतन १०८ जवों के द्वारा अष्टमंगलका आलेखन करके परमात्मा के प्रति अद्भुत भक्तिको अभिव्यक्त करते थे।
इस शास्त्रोक्त दृष्टांत में अगर किसीको अतिशयोक्ति लगती हो, उन्हें मुंबई के पास भीवंडी में रहते हुए विमलभाई सिंघवी नाम के मारवाड़ी युवक की प्रभुभक्ति के खास दर्शन करने योग्य हैं ।
शास्त्रोक्त सुविशुध्ध मुनिचर्यां को पालन करने के चुस्त पक्षपाती, युवा प्रतिबोधक प. पू. आ. भ. श्री विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. के संसार संबंध में रिश्तेदार ऐसे विमलभाईने करीब १९ सालकी उम्रमें शादी के बाद एक ही वर्षमें पूज्य श्री की निश्रामें आज से करीब १९ साल पहले अपनी जन्मभूमि तखतगढ (राजस्थान) में धर्मपत्नी के साथ उपधान तप की आराधना की । ४७ दिन तक लगातार सत्संग से उनके दिल में चारित्र स्वीकारने की प्रबल भावना जाग उठी थी, मगर परिवार जनोंके दबाव के कारण उनको अपनी भावना को मन में ही दबानी पड़ी और मुंबई के पास भीवंडी में जाकर अपने भाईओं के साथे पावरलूम के व्यवसाय में