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र लाभपात्रय में जाना पड़ता जाना पड़ता है
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
हाल में तो जिनदर्शन करने के लिए जिनालय में जाना पड़ता है और जिनवाणी श्रवण करने के लिए उपाश्रय में जाना पड़ता है, मगर अब इन दोनों का एक ही स्थान पर लाभ लेने की भावना रहती है, अर्थात अब तो समवसरण में साक्षात् श्री जिनेश्वर भगवंत के दर्शन और देशना श्रवण करने के मनोरथ हैं और वे जरूर पूरे होंगे ही ऐसी श्रद्धा है । अब तो साक्षात् श्री जिनेश्वर भगवंत के वरद हस्त से ही चारित्र अंगीकार करना है और ऐसा निरतिचार चारित्र पालन करना है कि जिससे उसी भवमें मुक्ति की प्राप्ति हो जाय ।
उन्होंने यह भी कहा कि - "मुझे अब जब भी तीर्थंकर परमात्मा या केवली भगवंत मिलेंगे तब मुझे उनसे निम्नोकत ४ प्रश्र पूछने हैं - (१) मुझको किन सिध्ध भगवंत ने निगोद से बाहर निकाला ? (२) इस से पूर्व में कौन से तीर्थंकर भगवंत की देशना मैंने.सुनी थी ? (३) परमात्मा की देशना सुनने के बाद भी किस कारण से मैं अब तक संसार में भटकता रहा? (४) अब किन भगवान के शासन में मेरा मोक्ष होगा ?"
'अब तक आपने किन किन तिर्थों की यात्रा की है।' ऐसे एक प्रश्र के प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा कि- "प्रतिवर्ष ९ बार पालिताना की यात्रा करता हूँ और निम्नोकत ५ तीर्थों में प्रत्येक महिने में एक बार अवश्य जाता हूँ । (१) मेड़ता रोड़ - श्री फलवृद्धि पार्श्वनाथ भगवान . का ५२ जिनालय (२) श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ (३) श्री जीरावल्ला पार्श्वनाथ (४) चारूप (५) भीलाड़-नंदीग्राम । प्रत्येक शनि-रविवार के दिन तीर्थयात्रा का लाभ लेने में बहुत आनंद का अनुभव होता है । उसमें भी राजस्थान में नागौर जिले में मेड़ता रोड़ के श्री फलवृद्धि पार्श्वनाथ भगवंत के जिनालय में मुझे सब से यादा आनंद की अनुभूति होती है । यदि आप किसी भी श्रावक को तीर्थयात्रा के लिए प्रेरणा करें तो मेड़ता रोड़ की यात्रा करने की खास प्रेरणा करें ऐसी मेरी नम्र विज्ञप्ति है । ४-५ घंटे तक वहाँ जिनभक्ति करने के बाद उस गाँव में अन्य कोई प्रवृत्ति न करते हुए अन्यत्र चले जाना चाहिए। अब भारत के सभी जैन तीर्थों की यात्रा २-३ सालमें करनेकी मेरी भावना है।"
बहुरत्ना वसुंधरा - २-15