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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ किया गया है उसके अनुसार तीसरे महिनेमें उनको जाज्वल्यमान तेजोमय श्री जिनबिम्ब के दर्शन हुए ... अन्य भी कुछ विशिष्ट अनुभव हुए । कई बार साधना के दौरान सुनहरे या श्वेत अक्षरोंमें कुछ सांकेतिक वाक्य या कुछ प्रश्रों के प्रत्युत्तर आँखे बंद होते हुए भी टी.वी. (दूरदर्शन) की तरह दिखाई देने लगे।
पिछले ३५ वर्षों में केवल एक दिन के अपवाद को छोड़कर उनकी साधना अखंड रूपसे चालु है । उनके पिताश्री के देहविलय के दिन संयोगवशात् एक दिन उनकी साधना नहीं हो पायी यह बात आज भी उन्हें बहुत खटकती है।
वर्तमानमें भी वे प्रतिदिन प्रातःकालमें ४ से ८ बजे तक निम्नोक्त प्रकारसे साधना करते हैं । प्रातः ४ बजे उठकर ४॥ से ५॥ बजे तक श्री पार्श्वनाथ भगवान या श्री सिमंधर स्वामी वीतराग परमात्मा का ध्यान सिद्धासन में बैठकर करते हैं । उस वक्त दोनों हाथ जोडकर हृदय या ललाट के सन्मुख रखकर परमात्मा की वीतराग मुद्रा एवं वीतरागता को भाव पूर्वक वंदना करते हैं एवं अपनी आत्माको परमात्मा के प्रति समर्पित करते हैं । ऐसी भावदशामें करीब ५० मिनिट तक स्थिर रहते हैं । उस वक्त उनको अपूर्व आनंद की अनुभूति होती है । इस ध्यान के दौरान उनके आसपास तेजोवलय एवं मस्तक के पीछे भामंडल की तरह तेज का वर्तुल उत्पन्न होता है, जिसको कई आत्माओं ने प्रत्यक्ष रूपमें देखा भी है। उनकी अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति साधना के दौरान उनके पास बैठने की हिंमत भी नही कर सकता, ऐसा उस साधना का प्रताप होता है । ५॥ से ६ बजे तक श्री ऋषिमंडल स्तोत्रपाठ एवं उसके मंत्रका जप करने के बाद मंदिर में जाकर जिनपूजा करते हैं । बादमें ७ से ८ तक भक्तामर स्तोत्र पाठ, वर्धमान शक्रस्तव पाठ, नवकार. महामंत्र की १ माला, उवसग्गहरं स्तोत्र की २ माला, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नम : और ॐ हीं अहँ नम : का जप एवं श्री वीतराग परमात्माका ध्यान करते हैं।
कभी बाहर गाँव जानेका प्रसंग उपस्थित होता है तब रात को २२॥ बजे उठकर भी वे अपने नित्य क्रमका अचूक पालन करते हैं । साधनामें निरंतरता बहुत महत्त्व की बात है ।