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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
उनके पिताजीने भी सवा करोड़ नवकार का जप किया था । उन्होंने भी देवलोकमें से आकर प्राणलालभाई को दर्शन दिये एवं जप के लिए अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त की है। उनके परिचित अन्य भी कुछ रिश्तेदार जो स्वर्गवासी हुए हैं उन्होंने भी दर्शन दिये हैं । कई बार देवोंने गुलाब के पुष्पों की वृष्टि और अमीवृष्टि भी की है। पूर्व जन्म की पत्नी जो हाल देवी है उसने भी उनको दर्शन दिये हैं । अगले जन्ममें एक संपन्न कच्छी परिवारमें मुम्बईमें उनका जन्म हुआ था । वहाँ भी उन्होंने नवकार महामंत्रकी सुंदर आराधना की थी ऐसा पत्नी-देवीने बताया है ।
नवकार महामंत्र के प्रभाव से होनेवाले ऐसे अनेकविध आधिदैविक अनुभवों का वर्णन पढ़कर सामान्य मनुष्य को जरूर आश्चर्य का अनुभव होता है, मगर विशिष्ट आत्म साधकों को इसमें जरा भी आश्चर्य नहीं होगा । वे तो आध्यात्मिक अनुभूतियों को ही महत्त्व देते हैं। नवकार के जप द्वारा विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियाँ जरूर हो सकती हैं मगर उनके लिए पंच परमेश्वष्ठी भगवंतों का अद्भुत आत्म स्वरूप गुरुगमसे एवं सद्वांचन द्वारा समझकर ऐसे निर्मल आत्म स्वरूप की अनुभूति करने के स्पष्ट लक्ष्य पूर्वक जप करना अत्यंत आवश्यक है ।
दि.२९-१-९६ के दिन ध्रांगध्रामें व्याख्यान के बाद प्राणलालभाई ने अपने आधिदैविक अनुभूतियों का वर्णन सहज भावसे हमारी समक्ष किया तब उनका लक्ष्य उपरोक्त दिशामें परिवर्तित करने का विनम्र प्रयास किया था । समय का परिपाक होने पर द्रव्य नवकार भाव नवकार में परिवर्तित होगा उसमें संदेह नहीं है ।
व्याख्यान श्रवण का योग होने पर प्राणलालभाई जरूर लाभ लेते हैं। चातुर्मास के दौरान समूहमें प्रतिक्रमण भी करते हैं । पिछले ७ वर्षो से नवपदजी की आयंबिल की ओली भी सालमें दो बार करते हैं और प्रतिमाह ६-७ आयंबिल भी करते हैं । जीवनमें ४०० आयंबिल करने की उनकी भावना है। करीब ४०० आयंबिल हो चुके हैं। अभी तक ४ अट्ठाई एवं १३ अट्ठम भी उन्होंने की हैं ।