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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
उसके बाद मैं पू. मुनि श्री त्रिभुवनतिलकविजयजी म.सा. के पास गया और अनको कहा कि - 'म.सा. ! आपको हानि न हो और लाभ ही हो ऐसी बात हो तो आप करेंगे या नहीं ? हानि का भुगतान हम करेंगे और लाभ होगा वह आपके लिए' । म.सा. ने कहा - 'हाँ, भले ।'
मैंने कहा - ' आपको निसर्गोपचार के अनुभवी डॉक्टर देखने के लिए आयेंगे। आप उन्हें आपके दर्द की जाँच-परख के लिए अनुमति प्रदान करना।
म.सा. ने कहा - 'भले, लेकिन मैं पेशाब नहीं पीऊँगा ।' मैंने कहा - 'भले' ।
इस तरह नवकार के प्रभावसे म.सा. तबीबी जाँच-परख के लिए संमत हुए यह जानकर पू.मुनि श्री हंसरत्नविजयजी म.सा. को बहुत आश्चर्य हुआ।
उसके बाद मैंने 'मानव मित्र' के उपनाम से सुप्रसिद्ध सुश्रावक श्री वल्लभजीभाई को फोन करके सारी बात बतायी । उनकी सूचना से दो दिन के बाद डो. अजय शाह वहाँ आये । म.सा. के दर्द की जाँचपरख करके निसर्गोपचार की विधि लिख दी । लेकिन दूसरे दिन फिरसे म.सा.ने उपचार के लिए निषेध कर दिया। . पू. हंसरत्नविजयजी म.सा. ने मुझे आह्वान के साथ कहा कि - 'म.सा. तो उपचार का निषेध कर रहे हैं, तो कहाँ गया आपके नवकार स्मरण का प्रभाव' ?
मैंने दो दिन का समय माँगा । रवि - सोमवार दो दिन मैं फिरसे नवकार महामंत्र के जपमें लीन हुआ । ऐसे उलझन भरे प्रसंगोंमें मेरे मित्र श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभुजी मुझे अनेक बार मार्गदर्शन देते थे । इस प्रसंगमें भी प्रभुजीने मुझे कहा कि - 'दो दिनमें म.सा. उपचार करवाने के लिए संमत हो जायेंगे' । और सचमुच दूसरे दिन जगडुशा नगरमें रहते हुए एक कच्छी श्रावक को एक सज्जन वहाँ ले आये । उनको भी केन्सर हुआ था, जो निसर्गोपचारसे दूर हो गया था । उन्होंने म.सा. को अपना