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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
१८७ जिनालयमें जाकर भावपूर्वक प्रभुपूजा करते हैं । जिनवाणी श्रवणका योग होता है तब वे अचूक लाभ लेते हैं । प्रतिदिन कम से कम बियासन का पच्चक्खाण करते ही हैं । उसमें केवल ५ द्रव्यों से अधिक द्रव्योंका उपयोग नहीं करते हैं । घी-दूध, फल और मेवे का आजीवन त्याग है, लेकिन साधु-साध्वीजी भगवंतों को अत्यंत भाव पूर्वक उपरोक्त द्रव्य बहोराकर भक्ति करते हैं । २-३ सब्जियों के सिवाय बाकी सभी हरी सब्जियों का त्याग है । सब्जी भी बिना मसालेवाली ही खाते हैं ।...
नवपदजी की ओलीकी आराधना अपनी जन्मभूमि कांडागरा गाँवमें जाकर करते हैं तब धर्मभावनाशील अनेक साधर्मिकों को अपने साथ ले जाते हैं और अपने घरमें ही आयंबिल करवानेका लाभ लेते हैं । ओली के दौरान व्याख्यानमें हररोज संघपूजन करते हैं और तपस्वियों का पारणा करवाकर विशिष्ट प्रभावना द्वारा बहुमान करते हैं । स्वयं नवपदजी की आराधना करते हैं और अनेकोंको उपरोक्त प्रकार से नवपदजीकी आराधना करवाते हैं, इसलिए कांडागरा जैसे छोटे गाँवमें भी अत्यंत अनुमोदनीय धर्मजागृति पायी जाती है ।
चातुर्मास के ४ महिने तक वे कांडागरामें रहते हैं, तब किसी भी गच्छ-संप्रदाय के साधु-साध्वीजी भगवंत उनके गाँवमें चातुर्मास बिराजमान होते हैं उनके दर्शन-वंदन हेतु जो भी साधर्मिक बाहर से आते हैं, उन सभीको वे आग्रह पूर्वक अपने घर ले जाकर अत्यंत भाव पूर्वक उनकी साधर्मिक भक्ति करते हैं। यदि कोई साधर्मिक भोजन करने के लिए 'ना' बोलते हैं तब वे स्वयं उपवास का पच्चक्खाण लेने के लिए तैयार हो जाते है ! ऐसी है बेजोड़ उनकी साधर्मिक भक्ति की भावना !
' चातुर्मास के प्रारंभ होने से पूर्व सारे कच्छ जिले के अनेक गाँवोंमें जहाँ भी साधु-साध्वीजी भगवंत बिराजमान होते हैं वहाँ वे अपनी गाड़ी से पहुँच जाते हैं और रत्नत्रयी के उपकरण अत्यंत भावपूर्वक बहोराकर अपने आपको धन्य मानते हैं।
चातुर्मास के दौरान एवं शेष कालमें भी जब साधु-साध्वीजी भगवंतोंका योग होता है तब अपने घरमें गौचरी-पानीका लाभ देने के लिए