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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
पहले वे साधु-साध्वीजी भगवंतों की हर प्रकार की वैयावच्च का लाभ अपने पैसों से लेते थे, मगर मर्यादित आय के कारण अभी वहाँ पालनपुर के सुश्रावक के आर्थिक सहयोग से भोजन व्यवस्था होती है, जिसका संचालन रमेशभाई एवं उनकी धर्मपत्नी मानद सेवा के रूपमें करते हैं।
उनकी धर्मपत्नी हाल एकांतरित ५०० आयंबिल कर रही हैं । इससे पूर्व में उन्होंने वर्षांतप, उपधान आदि आराधना भी की है । रात्रिभोजन और कंदमूल का आजीवन त्याग किया है।
मर्यादित आय होते हुए भी अरिहंत परमात्म भक्ति और साधुसाध्वीजी भगवंतोंकी सेवा बिना वेतन से करते हुए रमेशभाई नाई और उनकी धर्मपत्नी की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना ।
पता : रमेशभाई पूजारी, जैन मंदिर, मु. पो. काणोदर, ता. पालनपुर, जि. बनासकांठा (उ. गुजरात)
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उपधान करते हुए मोची जीवराजभाई नागरभाई झाला
सौराष्ट्र के बोटाद शहरमें रहते हुए मोची कुलोत्पन्न जीवराजभाई नागरभाई झाला (उ. व. ६५) को पिछले करीब १० वर्षों से जैन धर्म के प्रति आकर्षण हुआ । उसमें भी पिछले ५ वर्षों में प. पू. आ. भ. श्री विजयरुचकचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. आदिके सत्संगसे वह रंग अधिक गाढ होता जा रहा है। उपरोक्त पूज्य आचार्य भगवंत की पावन निश्रामें बोटाद से पालिताना का छौंरी पालक पदयात्रा संघ निकला था उसमें जीवराजभाई भी यात्रिक के रूपमें शामिल थे । पूज्य श्री की निश्रामें उन्होंने उपधान तप भी कर लिया।
पिछले ५ सालसे वे दिनमें केवल २ टाईम ही भोजन करते हैं। उसमें भी ५ द्रव्यों से अधिक द्रव्य नहीं लेने का पच्चक्खाण लिया है। भोजन के बाद हमेशा थाली धोकर पी जाते हैं । आयंबिल की ओली,