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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
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हरिजन दंपति लक्ष्मीबहन नवीनचंद्रभाई चावड़ा
की अनुमोदनीय आराधना
वर्धमान तपोनिधि, प.पू.आ.भ. श्री विजय वारिषेणसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा एवं सत्संग से जैन धर्म का पालन करते हुए राजकोट निवासी हरिजन कुलोत्पन्न नवीनचंद्रभाई चावड़ा एक कंपनी के मेनेजर हैं, फिर भी वे और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मीबहन चावडा हररोज नवकारसी, चौविहार, प्रतिक्रमण, पूजा, नवकार महामंत्रका जप आदि आराधना करते हैं एवं पर्व तिथियों में एकाशन, आयंबिल, उपवास आदि तपश्चर्या भी करते हैं । सप्त व्यसनों के त्यागी हैं।
इसी तरह अर्जुनभाई मकवाना आदि ३० भावुकात्मा हरिजन भी जैन धर्म का पालन करते हैं, जिनमें से कुछ भावुकों ने उपरोक्त तपस्वी पू. आ. भ. श्री विजय वारिषेणसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें (सं. २०५३) जामनगर में उपधान तप की आराधना भी मौन अभिग्रह के साथ की है।
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बच्चोंको धार्मिक अध्ययन करानेवाले दिलीपभाई बी. मालवीया (लुहार) की अनुमोदनीय आराधना
पिण्डवाडा (राजस्थान) निवासी, लुहार कुलोत्पन्न, दिलीपभाई मालवीया का दृष्टांत उनके उपकारी गुरु महाराज के श्रीमुखसे सुनकर, प्रस्तुत किताब की गुजराती आवृत्तिमें संक्षेपमें प्रकाशित किया गया है । एक पैर से विकलांग होते हुए भी वे शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें पधारे थे । अपने जीवन परिवर्तन के प्रसंग को कुछ विस्तार से लिखकर भेजनेकी हमारी सूचनाको शिरोमान्य करते हुए उन्होंने अपना इति वृत्त लिखकर भेजा, जो यहाँ उन्हीं के शब्दोंमें प्रस्तुत किया जा रहा है। वाचक सज्जन इस दृष्टांतमें से यथायोग्य सत्प्रेरणा ग्रहण करेंगे यही मंगल भावना । - संपादक