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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ चातुर्मास हुआ । पूज्यश्री की जन्मभूमि भी नार गाँव ही है । गाँवमें नाईका व्यवसाय करनेवाले अंबालालभाई पारेख मुनिश्री के परिचयमें आये । प्रायः प्रतिदिन प्रवचन श्रवण करते करते सत्संग का रंग बराबर लग गया । चातुर्मास के बाद म. सा. तो विहार कर गये मगर अंबालालभाई के मानसपट पर जैन धर्मके प्रति अहोभाव जाग्रत हो गया ।
उसके बाद कर्म संयोगसे अल्प समयमें अंबालालभाई का देहावसान हो गया । लेकिन अंत समयमें परिवार के किसी भी सदस्योंको याद न करते हुए, उपरोक्त पूज्य म. सा. का नाम ही उनके मनमें और मुखमें था । फलतः वे अंत समयमें भी अत्यंत स्वस्थ रह सके ।
इस प्रसंगसे उनके युवासुपुत्र सुरेशभाई (हाल उ. व. ४७ ) के अंतः करणमें जैन साधु भगवंत और जैन धर्मके प्रति विशिष्ट आकर्षण उत्पन्न हुआ। कुछ समय बाद उपरोक्त पू. मुनिराज श्री का नार गाँवमें पुनः पदार्पण हुआ तब सुरेशभाई भी उनके विशेष परिचयमें आये और पूज्यश्री की प्रेरणासे जैन धर्मकी आराधना करने लगे ।
सुरेशभाई ने अपने जीवनमें महाविगई त्याग, सप्त व्यसन त्याग, केरी त्याग, दिनमें केवल १ बार १ बाल्टी पानी से स्नान, सालमें ६ जोडी से अधिक वस्त्रों का त्याग, सालमें १ बार तीर्थयात्रा, बचत का ५ प्रतिशत राशि धर्म में वापरना इत्यादि ९ प्रतिज्ञाएँ ली हैं ।
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आज वे बस डेपोमें सरकारी नौकरी करते हैं फिर भी हररोज जिनपूजा अचूक करते हैं । पिछले १२ वर्षों से हर पर्युषणमें ८ उपवास करते हैं । उनकी धर्मपत्नी भी सुशील एवं धर्म संस्कार संपन्न है । उनके हृदय में भी जैन धर्म के प्रति बहुमान भाव है । उन्होंने वांकानेर एवं जूनागढ में उपधान तप की आराधना भी की है । अक्सर जैन साधु साध्वीजी भगवंतोंकी सुपात्र भक्ति का लाभ वे लेते रहते हैं । इस दंपतिने महिनेमें १५ दिन ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा भी ली है । सुरेशभाई एवं उनकी धर्मपत्नी की आराधना की हार्दिक अनुमोदना । शंखेश्वर में आयोजित अनुमोदना समारोहमें सुरेशभाई भी पधारे थे। उनकी तस्वीर पेज नं. 16 के सामने दी गई है ।