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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ आत्माओंको प्रोत्साहित करेंगे तो उन-उन आराधकों के हृदयमें अधिकतर सत्कार्य करनेका भावोल्लास जाग्रत होगा और संघों को भी लाभ होगा। सुज्ञेषु किं बहुना ?
नवकार महामंत्र के आराधक सरपंच बहादूरसिंहजी जाड़ेजा
कच्छ-मांडवी तहसिलमें मोटा आसंबीआ गाँवके सरपंच बहादूरसिंहजी जाडेजा (उ. व. ५८) को अध्यात्मयोगी प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म. सा. के सत्संगसे जैन धर्म का रंग लगा है ।
नवकार महामंत्र के प्रति उनकी आस्था बेजोड़ है । चलते फिरते भी उनकी जिह्वा के ऊपर नवकार महामंत्रका रटण चालू ही रहता है।
वे रोज जिनमंदिरमें जाकर प्रभुदर्शन करते हैं । व्याख्यान-श्रवणका योग होता है तब वे अचूक लाभ लेते हैं ।
श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी और उनके शासन के प्रति उनके हृदयमें अत्यंत अनुमोदनीय आदर है ।
गाँवके सरपंच होते हुए भी वे स्वभावसे अत्यंत विनम्र, विनयी और शालीन हैं । अपने उपकारी गुरु भगवंतों को वंदन करने के लिए वे दूर सुदूर भी पहुँच जाते हैं । (अभी वे सरपंच पदसे निवृत्त हुए हैं)
शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें उन्होंने अत्यंत मननीय वक्तव्य दिया था । उनकी तस्वीर पेज नं. 15 के सामने प्रकाशित की गयी है।
पता : बहादूर सिंहजी जाडेजा (भूतपूर्व सरपंच) मु.पो. मोटा आसंबीया, ता. मांडवी, कच्छ (गुजरात) पिन : ३७०४८५