________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
४५
I
किया । सेठ के घरमें कई भैंसें थीं । उनको लेकर मंगाभाई जंगलमें जाते थे और वापस लौटते समय रसोई बनाने के लिए लकड़ियाँ ले आते थे
1
11
एक दिनकी बात है । मंगाभाई ने जंगल से लायी हुई लकड़ियों में से कुछ लकड़ियों में उदई - दीमक (एक प्रकार के कीड़े) दिखाई दिये । सेठानी मंजूबेन अत्यंत जीवदयाप्रेमी थीं । उन्होंने उदईयुक्त लकड़ियाँ दिखाते हुए मंगाभाई को प्रेमसे समझाया कि " देख, प्रमार्जना किये बिना लकड़ियाँ जलानेसे कितने जीवोंकी हिंसाका पाप हमें लगता है 1 सेठानी के हृदयमें रहे हुए जीवदया के परिणाम मंगाभाई के जीवनमें संक्रमित हो गये । उन्होंने निश्चय किया कि " अबसे बराबर देखकर ही जंतुरहित लकड़ियाँ लाऊँगा । हरि वनस्पति को काटुंगा नहीं । पैर में जूते नहीं पहनूँगा । प्रत्येक जीवों के प्रति आत्मीयता का भाव रखूँगा । जैन मुनियों के प्रवचन सुनूँगा ।
मंगाभाई ने सात महा व्यसनों के त्याग की प्रतिज्ञा ली । पक्षियों को दाना एवं कुत्तों को बाजरे की रोटी वे स्वयं जाकर देते थे । पशुपक्षियोंका शिकार करनेवालों को वे प्रेमसे समझाकर शिकार के व्यसन का त्याग करवाते थे । पशु-पंछी मानो उनके परिवारके सदस्य हों, उसी तरह उनकी भावसे सेवा करते हुए वे कभी थकते नहीं थे ।
एक बार दुष्काल के कारण तालाबमें पानी लगभग सूख गया था । ऐसी स्थिति में हिंसक लोग कछुए एवं मछलियों को आसानीसे पकड़कर मारने लगे थे । यह देखकर मंगाभाई के हृदयमें करुणा उत्पन्न हुई । उन्होंने भक्त मंडली को संगठित किया । सहायता के लिए पाटडी जैन महाजन से बात की । महाजन के अग्रणी सुश्रावक श्री खोड़ीदासभाई छबीलदास कांतिभाई गांधी और पोपटलालभाई ठक्कर इत्यादिने बैलगाडियाँ एवं गेहूँके आटेकी कणेक (लुगदी ) इत्यादि सामग्री जुटाई। उसे लेकर मँगाभाई आदि तालाब के किनारे पर गये और आटे की कणेक को पानीमें डालने लगे । उसे खाने के लिए आते हुए कछुए और मछलियाँ आदि जलचर जीवों को पानीसे भरे हुए पीपोंमें डालकर बैलगाडी द्वारा वे पीपे जलसे भरे हुए बड़े जलाशयमें खाली करने लगे । इस तरह उन्होंने करीब ८०० कछुए