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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ . श्रावकोचित आचार उनके जीवनमें सहज रूपसे आत्मसात हो गये हैं । चलते-फिरते भी नवकार महामंत्रका स्मरण उनके मनमें हमेशा चलता ही रहता है । इसके प्रभाव से बस दुर्घटना में भी उनका किस तरह चमत्कारिक बचाव हुआ, इसका वर्णन श्री कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित 'जेना हैये श्री नवकार तेने करशे शुं संसार ?' नाम की किताबमें प्रकाशित हुआ है। . पिछले १२ सालों से वे हमारे परिचयमें आये हैं, तब से प्राय : हर वर्षमें एक बार तो दर्शन हेतु आते ही हैं । प्रवचन के समय आँख बंद करके घंटों तक अस्खलितस्पसे बहती हुई उनकी प्रासादिक एवं प्रास युक्त आध्यात्मिक वाणी का आस्वाद जिन्होंने एक बार भी लिया है वे जीवनभर उनको भूल नहीं सकते । इसका यश वे अपने परम उपकारी गुरुदेव श्री पंन्यासजी महाराज को ही देते हैं।
वक्तृत्व शक्ति की तरह उनकी लेखन शैली भी अद्भूत एवं असरकारक है । पत्रव्यवहारमें भी सामान्य बातों की अपेक्षा से आध्यत्मिक अमृत ही वे परोसते हैं। पूज्य पंन्यासजी महाराज के जीवनके बारेमें उन्होंने सुंदर पुस्तक का आलेखन किया है, जो सचमुच पढ़ने लायक है।
उनकी धर्मपत्नी पुष्पाबेन भी अत्यंत सेवाशील, शांत एवं सरल स्वभावी सुशील सन्नारी हैं । जंबूसरमें पधारते हुए किसी भी समुदाय के साधु साध्वीजी भगवंतों की वे सुंदर वैयावच्च करती हैं ।। _ 'बाप से बेट सवाया' इस उक्ति के अनुसार प्रो. केसुभाई के २ सुपुत्रोंमें से छोटे सुपुत्र सुरेशकुमार पूर्वजन्म की कोई योगभ्रष्ट आत्मा हो उस तरह ३२ वर्षकी युवावस्थामें भी संसार के वातावरण से निर्लिप्त रहकर ब्रह्मचर्ययुक्त अंतर्मुखी जीवन व्यतीत करते हैं । कुंडलिनी शक्ति के जागरण से सहज स्फूर्त कवित्व शक्ति के वे स्वामी हैं ! वे भी घंटों तक सहज स्फुरणासे आध्यात्मिक वार्तालाप देते हैं ।
ऐसी आत्माओं की आध्यात्मिक शक्तिओं का सकल श्रीसंघको लाभ मिल सके, इसके लिए साधन संपन्न सुश्रावकों को उनकी उचित रूपसे साधर्मिक भक्ति करनी चाहिए । सुज्ञेषु किं बहुना ?