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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ रसिकभाई हररोज सुबहमें ६ से ८.३० बजे तक जोगीवाड़े में शामलाजी पार्श्वनाथ भगवान की स्वद्रव्यसे अष्टप्रकारी जिनपूजा एवं नवकार महामंत्र की २ पक्की माला का जप करते हैं । प्रतिकूल परिस्थिति में भी वे अपना यह नित्यक्रम छोडते नहीं हैं । एक बार जब हिंदूमुसलमान समाज के बीच संघर्ष चल रहा था, तब भी वे नवकार महामंत्र का स्मरण करते करते मुस्लिम आबादीवाली तीन गलियोंमें से गुजरकर प्रातः ६ बजे जोगीवाड़े के जिनालयमें ही जिनपूजा के लिए जाते थे । रास्तेमें कुछ मुस्लिम युवक उनको परेशान करने के लिए कुछ न कुछ उलटा सीधा बोलते थे तब वे उनके प्रति माध्यस्थ्य भाव रखते हुए नवकार महामंत्र के स्मरणमें ही अपने मनको संलग्न रखते थे । फलतः मुस्लिम युवक भी उनका बाल तक बाँका नहीं कर सके । श्री पार्श्वनाथ भगवंत एवं नवकार महामंत्र के प्रति दृढ श्रद्धा का ही यह चमत्कार था।
क्वचित् रातको जगने के समय से पहले आँख खुल जाती तब मनमें निरर्थक विचार प्रवेश न करें इसके लिए वे तुरंत अपने मनमें नवकार महामंत्र का स्मरण चालु कर देते हैं । कभी जप के दौरान अगर मन में कोई अप्रस्तुत विचार आ जाता है तब वे तुरंत मन ही मन बोलते हैं कि 'अरे ! यह दूसरी केसेट कैसे चढ गयी' ? और तुरंत सावधान होकर जपमें मनको जोड़ देते हैं ।
श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ महामंत्र का जप करने के प्रभावसे उनको कई अद्भुत अनुभूतियाँ होती हैं, जिन से नवकार महामंत्र एवं जैन धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा उत्तरोत्तर बढती ही जाती है ।
चैत्यवंदन विधि, ९ स्मरण, लघु शांति इत्यादि सूत्र उन्होंने कंठस्थ कर लिये हैं एवं हररोज सामायिक में बैठकर उनका स्वाध्याय करते हैं । अब वे प्रतिक्रमण विधि के सूत्र कंठस्थ कर रहे हैं । पर्व तिथियों में प्रतिक्रमण एवं आयंबिल, महिनेमें ५ बार बियासन बाकी के दिनोंमें नवकारसी एवं चौविहार तथा शीतकाल में पोरिसी का पच्चक्खाण वे करते हैं । कंदमूल आदि अभक्ष्य के त्याग की प्रतिज्ञा ली है। व्याख्यान श्रवण का मौका मिलता है तब अचूक लाभ लेते हैं । हर महिनेमें एक बार श्री शंखेश्वर महातीर्थ