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________________ साँप भी शांत हो जाता है। रोशनलालजी म. सा. के शिष्य, प्रेममुनि म. सा. मन्नोर जैन स्थानक, जिला-सोनीपत (हरियाणा), पीन १३१ १०१ लगभग विक्रम संवत २०१३ ग्रीष्म ऋतु का महिना था। मैं अपने गुरुदेव से आज्ञा लेकर नई दिल्ली जैन स्थानकसे कार्यवश बाहर जा रहा था। एक रोड़ के किनारे पर एक साइकिलों की मरम्मत करने वाला बैठा था। वह एक लोई के सरियेसे एक साँप को मारने की कोशिश कर रहा था। परन्तु नीचे कच्ची जगह होने से वह साँप आगे निकल जाता था। मेरा ध्यान उस ओर गया। मैंने कहा, 'हे भाई! इस साँप को मत मार।' वह सुनकर कुछ रुक गया और कहने लगा, 'वह साँप तो मारने लायक है, किसीको काट जाएगा तो वह तत्काल मर जाएगा।' मैंने कहा, 'अरे भाई! ठहर! इसे मत मार! वह फिर रुक गया। मैने नवकार मंत्र पढ़ा और एक वस्त्र उस सौंप पर डालकर पकड़ लिया और उसे आगे ले गया। वह साइकिल वाला जोरसे बोलकर कहने लगा, 'बाबाजी, इस साँप को छोड़ दो अन्यथा आप मर जाओगे।' मैंने उसकी बात पर अधिक ध्यान न देते हुए उस साँप को एक सूखे हुए नाले में डाल दिया। वह मिट्टी की दराद में घुस गया। इस घटना से मेरी आत्मा को बहुत बल मिला और मैंने अपना इष्ट मन्त्र, नवकार मन्त्र निश्चय किया। ___ मैं जब गुरुदेव के साथ त्रिनगर दिल्ली के जैन स्थानक में चातुर्मास के लिए स्थित था तब एक दिन प्रातः ही मैं गौचरी जा रहा था, तो कुछ नवयुवक अपने मकान की पुरानी छत की इन्टे तथा मिट्टी ऊखाड़कर सड़क पर डाल रहे थे। उसमें एक छोटा-सा साँप था। उसे देखकर वे सोच रहे थे कि, यह किसी को काट न खाय। दया के विचारसे युक्त होनेसे उनको मारने की भावना नही थी, परन्तु आम रास्ता होनेसे कोई व्यक्ति सांप को मार सकता था। अतः उस साँप की रक्षा करने की भावना मेरे दिल में उत्पन्न हुई और सर्वप्रथम नवकार मन्त्र पढ़ा और उसे जोली में ले लिया और स्थानक के पास पार्क में छोड़ दिया और वह कहीं छूप गया। एक दिन एक युवक को मैंने कहा कि, 'किसी भी समय घरसे बाहर जाना हो तो सर्व प्रथम तीन बार नवकार महा मन्त्र श्रद्धा सहित पढ़कर फिर जाना।' उस युवक ने रात्रि में आकर बताया कि, 'गुरूजी, मैं प्रातः ९ बजे घरसे बाहर जाते समय ३ बार नवकार मन्त्र पढ़कर मोटर साईकिल पर सवार होकर अपनी ड्यूटिके लिए बैंक में पहूँचा, और वहाँ पर काम करके सायंकाल जब अपने घरकी ओर लौट रहा था, तब मेरा मोटर साइकिल एसी जगह में फंस गया कि साइड़ में पुल की दीवार है और पीछे बस तेजीसे आ गई, और आगे से ट्रक भी आ गया। मैंने अपने मोटर साइकिल को पुलकी दीवार के साथ एकदम अड़ा दिया। अकस्मात होने में जरा भी कसर नहीं थी. फिर भी मैं तथा मोटर साईकिल सुरक्षित रहा। तब से मेरी श्रद्धा नवकार मन्त्र पर अत्याधिक बढ़ गई।' उस युवक की इस घटना को सुनकर मेरी आत्मा की श्रद्धा नवकार पर अधिक रूपसे स्थिर हो गई। महामंत्र के जापके साथ शुद्ध ब्रह्मचर्य पालन एवं अटल विश्वास होना परम आवश्यक है।
SR No.032463
Book TitleJena Haiye Navkar Tene Karshe Shu Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagar
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2015
Total Pages260
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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