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नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से ...
मुनिश्री नरेन्द्र विजयजी 'नवल' संस्कृत कोविद् [श्री मोहनखेडा तीर्थ ]
विश्व के प्रांगण में श्री नमस्कार महामंत्र को बेजोड़ - अजोड मंत्र के रूप में मान्यता मिलती जा रही है। जिसका प्रमुख कारण है नमस्कार का अर्थ विस्तार । तथा साधक पर आया भयंकर संकट से निस्तार हो जाना।
नमस्कार महामंत्र में अध्यात्म का पावन संदेश है तो भौतिक समृद्धि का संकेत भी है। योग, सिद्ध विद्या, विज्ञान, कर्म, धर्म आदि कसोटियों पर भी यह मंत्र कसा गया और इस मंत्र को जाग्रत मंत्र के रूप में माना गया है।
विश्व पूज्य अभिधान राजेन्द्र कोष के निर्माता युग प्रभावक श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. ने जीवन में दो बार महा कठीनतम् साधना पद्धति में इस मंत्र को साधकर जन जागृति और धर्म क्रान्ति का शंखनाद किया था। "अर्हम्" पद की अखण्ड साधना में स्वयं के जीवन को तो दिप्त बनाया ही, साथ ही जिन शासन के मार्ग पर हजारों हजार आराधकों को सन्मार्ग प्रदान कर जनकल्याण भी किया। उन्ही की परम्परा में व्याख्यान वाचस्पति जैनाचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य रत्न प्रवचन कार आगम ज्ञाता मुनिराज श्री देवेन्द्र विजयजी म. सा. हुए हैं। जिनकी पावन निश्रा
रहने का सौभाग्य निरन्तर मुझे बाल्यकाल से ही मिला है । १२ वर्ष तक अपने उपकारी गुरुदेव के साथ रह कर मैंने जो पाया उसे संक्षेप में प्रस्तुत कर "श्री नमस्कार महामंत्र" के प्रभाव के विषय में सत्य प्रकरण प्रकट कर रहा हूँ :
(१) पूज्य उपकारी गुरुदेव प्रातःकाल ३ बजे से उठकर नियमित रूप से ३ घंटे का ध्यान करते थे। पंच
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परमेष्ठि मुद्रा करके ध्यान करते समय जो अवश्य संकेत प्राप्त होता था उसे एक छोटी सी डायरी में नोट कर लेते थे। फिर उसी के अनुसार अनेक कठिन प्रश्नों का समाधान सहज रूप से कर देते थे।
(२) पूज्य उपकारी गुरुदेव कहा करते थे कि श्री नमस्कार महामंत्र आराधना से ही आत्म उद्धार की कुंजी प्राप्त होती है। अनादिकालीन विषय विकार की बिमारी मिटती है। प्रवचन करते समय अन्तर में अपने आप एसे एसे ब्रह्म वाक्य निकलते हैं कि स्वयं को भी बाद में आश्चर्य होता हैं। एक ऐसा प्रयोग भी हैं कि जो मंत्र बोल कर मुँह पर हाथ घुमा दिया जाय तो धारा प्रवाह एक ही विषय पर महिनों बोलने पर भी ज्ञान की अटूट धारा बहती रहती है। चिन्तन शक्ति और स्मृति की शक्ति खुल जाती है।
(३) पूज्य उपकारी गुरूदेव के कर कमलों से प्रतिष्ठा अंजनशलाकाएं, उपधान तपोत्सव, दीक्षा महोत्सव संघमाला और महापूजादि के कार्यक्रम होते थे। सभी कार्य में गुरुदेव को सफलता ही मिलती थी । एक मात्र कारण था “अरिहंते शरण पवज्जामि" का प्रतिदिन क्रियात्मक रूप से ध्यान और चित्ताकाश में नमस्कार मंत्र का भावनात्मक रूप में स्मरण ।
(४) पूज्य उपकारी गरुदेव ने अनेक स्थानों के संघ के आपसी विवादों को सुलझा दिया। क्लेश मिटा दिया। प्रेम की गंगा बहा दी। प्रति वर्ष गुरुदेव चातुर्मास के दरम्यान सावन सुदि ७ से पूर्णिमा तक में नमस्कार मंत्र की सामुहिक साधना कराते थे। जिसके प्रभाव से चातुर्मास ऐतिहासिक हो जाता था ।
(५) पूज्य उपकारी गुरुदेव ने नमस्कार महामंत्र नामक एक अति सुन्दर पुस्तक का लेखन किया है
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