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________________ उद्देशक २ : सूत्र ४०-४४ ४०. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा परिहारिओ अपरिहारिएण सद्धिं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खमति वा पविसति वा, णिक्खमंतं वा पविसंतं वा सातिज्जति ॥ ४१. जे भिक्खू अण्णउत्थएण वा गारत्थि एण वा परिहारिओ अपरिहारिएहि सद्धिं गामाणुगामं इज्जति, दूइज्जतं वा सातिज्जति ।। भोयण-जाय-पदं ४२. जे भिक्खू अण्णयरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता सुब्भिं - सुब्धिं भुंजति, दुब्भं दुब्भिं परिवेति, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति ॥ पाणग-जाय-पदं ४३. जे भिक्खू अण्णयरं पाणग-जायं पडिगाहेत्ता पुप्फयं - पुप्फयं आइयइ, कसायं- कसायं परिट्ठवेति, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति ।। बहुपरियावण्ण- भोयण-पदं ४४. जे भिक्खू मणुणं भोयण-जायं बहुपरियावण्णं, अदूरे तत्थ साहम्मिया संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया संता परिवसंति, ते अणापुच्छित्ता अणिमंतिया परिवेति, परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ।। २८ यो भिक्षुः अन्ययूथिकेन वा अगारस्थि वा पारिहारिकः वा अपारिहारिकेण सार्द्धं बहिः विचारभूमिं वा विहारभूमिं वा निष्क्रामति वा प्रविशति वा, निष्क्रामन्तं वा प्रविशन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः अन्ययूथिन वा अगारस्थितेन वा पारिहारिकः अपारिहारिकेण सार्द्धं ग्रामानुग्रामं दूयते, दूयमानं वा स्वदते । भोजनजात-पदम् यो भिक्षुः अन्यतरद् भोजनजातं प्रतिगृह्य 'सुब्भिं' 'सुब्धिं' भुङ्क्ते, 'दुब्भिं' 'दुब्भिं' परिष्ठापयति, परिष्ठापयन्तं वा स्वदते । पानकजात-पदम् यो भिक्षुः अन्यतरत् पानकजातं प्रतिगृह्य 'पुप्फयं पुप्फयं' (पुष्पकं पुष्पकं ) आपिबति, 'कसायं- कसायं' (कषायं - कषायं) परिष्ठापयति, परिष्ठापयन्तं वा स्वदते । बहुपर्यापन्न - भोजन-पदम् यो भिक्षुः मनोज्ञं भोजनजातं बहुपर्यापन्नम्, अदूरे तत्र साधर्मिकाः साम्भोगिकाः समनोज्ञाः अपारिहारिकाः सन्तः परिवसन्ति, तान् अनापृच्छ्य अनिमन्त्र्य परिष्ठापयति, परिष्ठापयन्तं वा स्वदते । निसीहज्झयणं के ४०. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ साथ अथवा पारिहारिक अपारिहारिक के साथ बाह्य विचारभूमि (उत्सर्गभूमि) अथवा विहारभूमि ( स्वाध्यायभूमि) में प्रवेश अथवा निष्क्रमण करता है अथवा प्रवेश अथवा निष्क्रमण करने वाले का अनुमोदन करता है । ४१. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ के साथ अथवा पारिहारिक अपारिहारिक के साथ ग्रामानुग्राम परिव्रजन करता है अथवा परिव्रजन करने वाले का अनुमोदन करता है । २३ भोजनजात-पद ४२. जो भिक्षु नाना प्रकार का भोजन प्रतिग्रहण कर मनोज्ञ - मनोज्ञ खा लेता है और अमनोज्ञअमनोज्ञ का परिष्ठापन करता है अथवा परिष्ठापन करने वाले का अनुमोदन करता है। पानकजात-पद ४३. जो भिक्षु नाना प्रकार का पानक प्रतिग्रहण कर मनोज्ञ - मनोज्ञ पी लेता है और अमनोज्ञअमनोज्ञ का परिष्ठापन करता है अथवा परिष्ठापन करने वाले का अनुमोदन करता है । २४ बहुर्यापन्न - भोजन-पद ४४. भिक्षु नाना प्रकार का मनोज्ञ भोजन लाए और वह अधिक मात्रा में आ गया, उस समय उसका परिष्ठापन करना होता है किन्तु परिपार्श्व क्षेत्र में सांभोजिक, समनोज्ञ, अपारिहारिक साधर्मिक साधु निवास कर रहे हैं, उन्हें पूछे बिना, उनको निमंत्रित किए बिना, जो भिक्षु उसका परिष्ठापन करता है अथवा परिष्ठापन करने वाले का अनुमोदन करता है । २५
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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