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________________ उद्देशक २ : सूत्र ८ - १६ ८. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं विसुयावेति, विसुयार्वेतं वा सातिज्जति ॥ जिंघति-पदं ९. जे भिक्खू अचित्तपतिट्ठियं गंधं जिंघति, जिघंतं वा सातिज्जति ।। सयमेवकरण पर्द १०. जे भिक्खू पदमगं वा संकर्म वा आलंबणं वा सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। ११. जे भिक्खु दगवीणियं सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। १२. जे भिक्खू सिक्कगं वा सिक्कगणंतगं वा सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। १३. जे भिक्खू सोत्तियं वा रज्जुयं वा चिलिमिलि सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति । १४. जे भिक्खू सूईए उत्तरकरणं सयमेव करेति, करें या सातिज्जति ।। १५. जे भिक्खू पिप्पलयस्स उत्तरकरणं सयमेव करेति करेंतं सातिज्जति ।। वा १६. जे भिक्खू णहच्छेयणगस्स उत्तरकरणं सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ २४ यो भिक्षुः दारुदण्डकं पादप्रोञ्छनं 'विसुयावेति', 'विसुयावेत' वा स्वदते। प्राण-पदम् यो भिक्षुः अचित्तप्रतिष्ठितं गंधं जिघ्रति, जिघ्रन्तं वा स्वदते । स्वयमेव करण-पदम् यो भिक्षुः पदमार्गं वा संक्रमं वा अवलम्बनं वा स्वयमेव करोति कुर्वन्तं वा स्वदते । 2 यो भिक्षुः दकवीणिकां स्वयमेव करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः शिक्यकं वा शिक्यकानन्तकं वा स्वयमेव करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते। यो भिक्षुः सौत्रिकां वा रज्जुकां वा चिलिमिलिं स्वयमेव करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सूच्याः उत्तरकरणं स्वयमेव करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः 'पिप्पलयस्य' उत्तरकरणं स्वयमेव करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः नखच्छेदनकस्य उत्तरकरणं स्वयमेव करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते। निसीहज्झयणं ८. जो भिक्षु काष्ठदंड वाले पादप्रोज्छन को सुखाता है अथवा सुखाने वाले का अनुमोदन करता है। घ्राण पद ९. जो भिक्षु अचित्त पदार्थ की गंध को सूंघता है अथवा सूंघने वाले का अनुमोदन करता है। स्वयमेवकरण पद १०. जो भिक्षु पदमार्ग, संक्रम अथवा अवलम्बन का स्वयं ही निर्माण करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। ११. जो भिक्षु दकवीणिका का स्वयं ही निर्माण करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। १२. जो भिक्षु छींके अथवा छींके के ढक्कन का स्वयं ही निर्माण करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। १३. जो भिक्षु सूत अथवा रज्जु की चिलिमिलि का स्वयं ही निर्माण करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है।" १४. जो भिक्षु सूई का उत्तरकरण स्वयं ही करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। १५. जो भिक्षु कैंची का उत्तरकरण स्वयं ही करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। १६. जो भिक्षु नखच्छेदनक का उत्तरकरण स्वयं ही करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है ।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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