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________________ निसीहज्झयणं उद्देशक २० : सूत्र ६-९ ४४४ अपलिउंचियं आलोएमाणस्स ___ आलोचयतः पाञ्चमासिकम्, पंचमासियं, पलिउंचियं . परिकुञ्चितम् आलोचयतः आलोएमाणस्स छम्मासियं ।। षाण्मासिकम्। तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए ___तस्मात् परं परिकुञ्चिते वा अपरिकुञ्चिते वा ते चेव छम्मासा॥ वा ते एव षण्मासाः। निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को पाञ्चमासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को षाण्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। उससे आगे (पाञ्चमासिक से अधिक प्रतिसेवना करने वाले को) छलपूर्वक अथवा निश्छल भाव से आलोचना करने पर वे ही छह मास (वही पाण्मासिक प्रायश्चित्त) प्राप्त होते हैं। बहुसो पडिसेवणा-पदं बहुशः प्रतिसेवन-पदम् ६. जे भिक्खू बहुसोवि मासियं यो भिक्षु बहुशः अपि मासिकं परिहारहाणं पडिसेवित्ता परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, आलोएज्जा, अपलिउंचियं अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः मासिकम्, आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं परिकुञ्चितम् आलोचयतः द्वैमासिकम्। आलोएमाणस्स दोमासियं। बहुशः प्रतिसेवना-पद ६. जो भिक्षु बहुत बार मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को मासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को द्वैमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता ७. जे भिक्खू बहसोवि दोमासियं यो भिक्षुः बहुशः अपि द्वैमासिकं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, आलोएज्जा, अपलिउंचियं अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः आलोएमाणस्स दोमासियं, द्वैमासिकम्, परिकुञ्चितम् आलोचयतः पलिउंचियं आलोएमाणस्स त्रैमासिकम्। तेमासियं। ७. जो भिक्षु बहुत बार द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को द्वैमासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को त्रैमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता ८. जे भिक्खू बहुसोवि तेमासियं यो भिक्षुः बहुशः अपि त्रैमासिकं परिहारहाणं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, आलोएज्जा, अपलिउंचियं अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः आलोएमाणस्स तेमासियं, ___ त्रैमासिकम्, परिकुञ्चितम् आलोचयतः पलिउंचियं आलोएमाणस्स चातुर्मासिकम्। चाउम्मासियं॥ ८. जो भिक्षु बहुत बार त्रैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को त्रैमासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। ९. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं यो भिक्षुः बहुशः अपि चातुर्मासिकं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, आलोएज्जा, अपलिउंचियं अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः आलोएमाणस्स चाउम्मासियं, चातुर्मासिकम्, परिकुञ्चितम् पलिउंचियं आलोएमाणस्स आलोचयतः पाञ्चमासिकम्। पंचमासियं॥ ९. जो भिक्षु बहुत बार चातुर्मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को चातुर्मासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को पाञ्चमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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