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निसीहज्झयणं ३४. जे भिक्खू णितियं वाएति, वाएंतं
वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः नैत्यिकं वाचयति, वाचयन्तं वा स्वदते।
उद्देशक १९ : सूत्र ३४-३७ ३४. जो भिक्षु नैत्यिक को वाचना देता है
अथवा वाचना देने वाले को अनुमोदन करता है।
३५. जे भिक्खू णितियं पडिच्छति, यो भिक्षुः नैत्यिकाद् प्रतीच्छति, ३५. जो भिक्षु नैत्यिक से वाचना ग्रहण करता पडिच्छंतं वा सातिज्जति॥ प्रतीच्छन्तं वा स्वदते।
है अथवा वाचना ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
" किया जाता
३६.जे भिक्खू संसत्तं वाएति, वाएंतं वा
सातिज्जति॥
यो भिक्षुः संसक्तं वाचयति, वाचयन्तं वा स्वदते।
३६. जो भिक्षु संसक्त को वाचना देता है
अथवा वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है।
३७. जे भिक्खू संसत्तं पडिच्छति, यो भिक्षुः संसक्ताद् प्रतीच्छति, ३७. जो भिक्षु संसक्त से वाचना ग्रहण करता पडिच्छंतं वा सातिज्जतिप्रतीच्छन्तं वा स्वदते।
है अथवा वाचना ग्रहण करने वाले का
अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं तत्सेवमानः आपद्यते चातुर्मासिकं -इन स्थानों का आसेवन करने वाले को परिहारट्ठाणं उग्घातियं ।। परिहारस्थानम् उद्घातिकम्।
उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान प्राप्त होता है।