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आमुख
प्रस्तुत उद्देशक तीन पदों (विभागों) में विभक्त है-१. वियड २. स्वाध्याय एवं ३. वाचना।
'वियड' शब्द से कस्तूरी आदि बहुमूल्य वस्तु, द्राक्षासव, अफीम, अम्बर आदि बहुमूल्य और मादक औषधीय पदार्थों का ग्रहण किया जा सकता है। इस दृष्टि से संक्षेप में यह सम्पूर्ण पद एवं उसका भाष्य औषध-प्रयोग के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण निर्देश प्रदान करता है
१. औषध भी क्रीत, प्रामित्य आदि एषणा-दोषों से मुक्त ग्रहण करना चाहिए। २. औषध की मात्रा के विषय में सावधानी रखनी चाहिए। ३. विशिष्ट औषध को ग्रहण करते समय अनेक प्रकार की सावधानियां अपेक्षित हैं। ४. औषध के नयन-आनयन के विषय में यतना अपेक्षित है।
स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है। अतः स्वाध्याय महान् आभ्यन्तर तप एवं निर्जरा का सर्वोत्कृष्ट साधन है। आगमवाङ्मय में आगमस्वाध्याय के सम्बन्ध में प्रकीर्ण रूप में अनेक निर्देश उपलब्ध होते हैं। पर समग्रता की दृष्टि से यह उद्देशक अपना वैशिष्ट्य रखता है-ऐसा कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। किन तिथियों में, कब, किस प्रकार की प्राकृतिक एवं शारीरिक परिस्थितियों में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। निषिद्ध अवस्थाओं में स्वाध्याय करने से किन-किन दोषों की संभावना रहती है, उन विषयों में क्या अपवाद संभव हैं-आदि सम्पूर्ण जानकारी के लिए प्रस्तुत विषय में ओघनियुक्ति, आवश्यकनियुक्ति, व्यवहारभाष्य, निशीथभाष्य एवं स्थानांग टीका के साथ कुछ वैदिक ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो खगोल, भूगोल के साथ-साथ अनेक वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विषयों का भी ज्ञान संभव है।
'वाचना पद' में शास्त्र-वाचना (अध्यापन) के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण निर्देश उपलब्ध होते हैं। आगम अर्हतों की वाणी है। जिस प्रकार महा मूल्यवान कौस्तुभ मणि भास पक्षी के गले में नहीं पहनाया जा सकता, उसी प्रकार आगम-वाङ्मय का ज्ञान योग्यता की परीक्षा किए बिना जिस तिस को नहीं दिया जा सकता।
प्रस्तुत आलापक में व्युत्क्रम से आगमों का वाचन करने, अयोग्य को वाचना देने, योग्य को वाचना न देने, गृहस्थ अथवा अन्यतीर्थिक से वाचना ग्रहण करने अथवा उन्हें वाचना देने आदि वाचना सम्बन्धी अनेक अतिक्रमणों का प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। इस प्रसंग में निशीथभाष्य एवं चूर्णि में पात्र, प्राप्त एवं व्यक्त को आगमोक्त क्रम से वाचना देना, अपात्र, अप्राप्त (प्राथमिक ज्ञान की दृष्टि से अयोग्य) और अव्यक्त को वाचना न देना, समान योग्यता वाले शिष्यों के अध्यापन में निष्पक्षता रखना, आचार्य-उपाध्याय आदि से प्राप्त वाचना को ग्रहण करना एवं पार्श्वस्थ, अवसन्न आदि शिथिलाचारियों से अध्ययनअध्यापन का निषेध इत्यादि अनेक विषयों का सम्यक् निरूपण हआ है।
इस प्रकार औषध सम्बन्धी समस्त विवरण तथा स्वाध्याय एवं वाचना सम्बन्धी अनेक उक्त-अनुक्त विषयों की दृष्टि से यह उद्देशक विशिष्ट है।
१. उत्तरा. २९/१९