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________________ उद्देशक १८ : टिप्पण ४२२ निसीहज्झयणं स्थित गृहस्थ से अशन, पान आदि का ग्रहण निषिद्ध है। आयारचूला • भिक्षु वस्त्र की निश्रा से वर्षावास एवं ऋतुबद्धवास न के अनुसार नौका में आरोहण करते समय मुनि के लिए साकार ___ करे। भक्तप्रत्याख्यान की विधि है। यहां प्रश्न होता है कि जब नौका में प्रस्तुत प्रकरण में निशीथभाष्यकार एवं चूर्णिकार ने विशेष कुछ आरोहण करते समय भक्तप्रत्याख्यान करने की विधि है तब नौगत स्पष्टीकरण किए बिना केवल चौदहवें उद्देशक के पात्र-पद की भिक्षु से सम्बद्ध चारों विकल्पों के प्रायश्चित्तकथन का क्या अभिप्राय? भुलावण दी है।" चूर्णिकार ने यहां पच्चीस सूत्रों का उल्लेख किया तथा शेष विकल्पों का आयारचूला में निषेध न करने का क्या । है१२ जबकि मुनिद्वय (उपाध्याय अमरमुनि और मुनि कन्हैयालाल कारण? इसी प्रकार आयारचूला में निषिद्ध अन्य पदों के विषय में 'कमल') के द्वारा सम्पादित निशीथसूत्रम् के अनुसार इस पद में प्रस्तुत आगम में प्रायश्चित्तकथन न करने का क्या कारण हो सकता। पैंतालीस एवं हमारे द्वारा गृहीत पाठ में इकतालीस सूत्र होते हैं। है?–इत्यादि जिज्ञासाएं अन्वेषण की अपेक्षा रखती हैं। संभव है, नवीनीकरण, सुरभिकरण (सुगन्धित करने) एवं आतापना ७. सूत्र ३३-७३ के सूत्रों का एकत्व करने से यह संख्याभेद हुआ है। प्रस्तुत 'वस्त्र-पद' आलापक में वस्त्र से संबद्ध अनेक विषयों प्रस्तुत सन्दर्भ में दूसरा विमर्शनीय बिन्दु है-निक्कोरणका संस्पर्श हुआ है मुखापनयन का। क्या पात्र के समान वस्त्र में भी मुखापनयन संभव • भिक्षु क्रीत, प्रामित्य, परिवर्त्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, आहृत है? क्या अनुपयोगी दशा का अपनयन अथवा कसीदे आदि के द्वारा आदि एषणा-दोषों से दुष्ट वस्त्र ग्रहण न करे। वस्त्रदशा का परिकर्म उसका निक्कोरण कहला सकता है? अथवा .वस्त्रकल्पिक भिक्षु वस्त्र लाए, वह किसे दे और किसे न । पात्र-परिकर्म की समानता के कारण यह पाठ आया है-इस विषय में दे। निश्चयपूर्वक कहना शक्य नहीं। निशीथ की हंडी में समग्र आलापक उपयोगी वस्त्र का परिष्ठापन न करे और अनुपयोगी को के लिए पात्र-आलापक की भुलावण देते हुए कहा है-'तिण में धारण न करे। एतलो विशेष-पात्रा नै अधिकारै कोरणो कह्यो, ते वस्त्र अधिकारे • वस्त्र के वर्ण का राग-द्वेष के कारण अथवा निष्कारण कोरणो नथी।'१३ विपर्यास न करे। ध्यातव्य है कि प्राचीन काल में पुराने अथवा अमनोज्ञ गन्ध • पुराने वस्त्र के नवीनीकरण और दुर्गन्धयुक्त वस्त्र को वाले वस्त्र को नवीन बनाने के लिए कल्क, लोध्र आदि से आघर्षण सुगन्धित बनाने हेतु उसका प्रक्षालन अथवा आघर्षण-प्रघर्षण न एवं जल से प्रक्षालन की विधि प्रचलित थी। इसीलिए आयारचूला में इन परिकर्मों का निषेध तथा प्रस्तुत उद्देशक में इनका प्रायश्चित्त • यदि पात्र का आतापन करना अपेक्षित हो तो उसे कहां। प्रज्ञप्त है। इसी प्रकार वस्त्रैषणा-पद में प्रज्ञप्त सदोष वस्त्र का ग्रहण, रखकर आतापन-प्रतापन न करे। वस्त्र का विभिन्न सचित्त अथवा दुर्बद्ध आदि स्थानों पर आतापन • वस्त्र में यदि पृथिवीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वनस्पति- आदि आयारचूला में निषिद्ध पदों का प्रस्तुत आलापक में प्रायश्चित्त काय, त्रसकाय आदि हों तो उसे निकाल कर अथवा निकलवा कर प्रज्ञप्त है अतः दोनों आगमों का तुलनात्मक अध्ययन विशिष्ट ज्ञानवर्धक वस्त्र का ग्रहण न करे। हो सकता है। • यदि याचना-वस्त्र ग्रहण करना हो तो उसका अवभाषण ___ शब्द-विमर्श हेतु द्रष्टव्य-निसीहज्झयणं १४/१-४१ और किस परिस्थिति में और कहां न किया जाए। उसके टिप्पण। करे। १. आचू. ३/१७,२२ २. निसीह. १८/३३-३६ ३. वही, १८/३७-३९ ४. वही, १८/४०,४१ ५. वही, १८/४२,४३ ६. वही, १८/४४-५१ ७. वही, १८/५२-६२ ८. वही, १८/६३-६८ ९. वही, १८/७०,७१ १०. वही, १८/७२,७३ ११. निभा. गा. ६०२७ १२. वही, भा. ४ चू.पृ. २१८-सुत्ताणि पणवीसं उच्चारेयव्वाणि जाव समत्तो उद्देसगो। १३. नि. हुंडी (अप्रकाशित) १४. आचू. ५/३१-३४
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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