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________________ निसीहज्झयणं ४०३ उद्देशक १७ : टिप्पण में प्राचीन भारत के वाद्य यंत्रों के विषय में अनेक प्रकार की जानकारियां ४. गोहिय-भांडों द्वारा कांख एवं हाथ में रखकर बजाया उपलब्ध होती हैं। जाने वाला वाद्य। ३. घन-कांस्य आदि धातुओं से निर्मित वाद्य घन कहलाते ५. वालिया-वाली देशी शब्द है-इसका अर्थ है मुंह के पवन हैं। प्रस्तुत आगम में कंस, कंसताल, लत्तिय, गोहिय, मकरिय से बजाया जाने वाला तृण-वाद्य ।' आदि नौ वाद्यों का उल्लेख हुआ है। आयारचूला में इनके अतिरिक्त ६. खरमुही-काहला (गर्दभमुखाकार काष्ठमय मुखवाला किरिकिरिया का नाम भी आया है। करताल, कांस्यवन, नयघटा, वाद्य)। शुक्तिका, कण्ठिका, घर्घर, झंझताल आदि वाद्य भी इसी वर्ग में ७. पिरिपिरि-पिपुड़ी (बांस आदि की नाली से बजने वाला आते हैं। वाद्य)। ४. शुषिर-फूंक से बजाए जाने वाले बांसुरी आदि वाद्य शुषिर इस प्रकार कुछ वाद्यों के विषय में यत्किंचित व्याख्या उपलब्ध कहलाते हैं । प्रस्तुत आगम में इस वर्ग में शंख, वंश, वेणु आदि छह होती है। शेष तत्कालीन साहित्य में अन्वेषणीय हैं। वाद्यों का उल्लेख हुआ है। आयारचूला में इस वर्ग में पांच वाद्यों विशेष हेतु द्रष्टव्य-ठाणं ४।६३२ का टिप्पण, भगवई ५।६४ का उल्लेख हुआ है। भरत मुनि ने इस वर्ग के अंतर्गत वंश को ___का भाष्य, आयारचूला (वृ. पृ. ४१२), निशीथभाष्य ४, चूर्णि पृ. अंगभूत तथा शंख और डिक्किनी आदि वाद्यों को प्रत्यंग माना है। ऐसा माना जाता है कि जिसमें प्राण शक्ति की न्यूनता होती है, वह १३. सूत्र १४०-१५२ शुषिर वाद्यों को बजाने में सफल नहीं होता। प्रस्तुत सम्पूर्ण आलापक बारहवें उद्देशक में चक्षुदर्शन की ज्ञातव्य है कि ठाणं, भगवई, णिसीहज्झयणं एवं आयारचूला प्रतिज्ञा के साथ आया हुआ है। यहां वही सम्पूर्ण आलापक कर्णश्रवण में अनेक वाद्यों के नाम आए हैं किन्तु उनके स्वरूप आदि के विषय की प्रतिज्ञा के साथ आया है। इन केदार, परिखा, उत्पल, पल्वल में भाष्य, टीका एवं चूर्णि में भिन्न-भिन्न जानकारियां उपलब्ध होती। आदि स्थानों में जो शब्द होते हैं, जल, पशु, पक्षी आदि की हैं तथा कई शब्दों के विषय में व्याख्याकार मौन हैं अतः सबका ध्वनियां होती है, उन्हें सुनने के संकल्प से जाने पर भी वे ही राग, यथोचित स्वरूप तत्सम्बन्धी साहित्य से ज्ञातव्य है। द्वेष और आसक्तिमूलक दोष आते हैं। अतः इन्द्रिय-विजय की शब्द विमर्श साधना में निरत भिक्षु को वहां संकल्पपूर्वक नहीं जाना चाहिए। १. तुणय-तुनतुना। आयारचूला के ग्यारहवें उद्देशक में भी इनमें से कतिपय स्थानों पर २. बद्धीसग-तूण वाद्य। शब्दश्रवण के संकल्प से जाने का निषेध किया गया है। ३. तुंबवीणिया-तम्बूरा। शब्द विमर्श हेतु द्रष्टव्य-निसीह. १२/१८-३० का टिप्पण। २०१ १. निसीह. १७/१३८ २. आचू. ११/३ ३. निसीह. १७/१३९ ४. ५. आचू. ११/४ दे.श.को.
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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