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________________ निसीहज्झयणं ३८७ संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं संस्थापयन्तं वा स्वदते। संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति॥ वा उद्देशक १७: सूत्र ९५-१०० और कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने वाले का अनुमोदन करता है। दीह-रोम-पदं दीर्घरोम-पदम् दीर्घरोम-पद ९५. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाइं जंघ- यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः दीर्घाणि ९५. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण जंघारोमाणि अन्ययूथिकेन वा से निर्ग्रन्थी की जंघाप्रदेश की दीर्घ रोमराजि वा कप्यावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, अगारस्थितेन वा कल्पयेद् वा को कटवाता है अथवा व्यवस्थित करवाता कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं वा है और कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। वाले का अनुमोदन करता है। ९६.जे निम्गंथे निग्गंथीए दीहाईवत्थि- यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः दीर्घाणि ९६. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वस्तिरोमाणि अन्ययूथिकेन वा से निर्ग्रन्थी की वस्तिप्रदेश की दीर्घ वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, अगारस्थितेन वा कल्पयेद् वा रोमराजि को कटवाता है अथवा व्यवस्थित कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं वा करवाता है और कटवाने अथवा व्यवस्थित सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। करवाने वाले का अनुमोदन करता है। ९७.जे निग्गंथे निग्गंथीए दीह-रोमाइं यो निर्ग्रन्था निर्ग्रन्थ्याः दीर्घरोमाणि ९७. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा से निर्ग्रन्थी की दीर्घ रोमराजि को कटवाता कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कल्पयेद् वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं है अथवा व्यवस्थित करवाता है और कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा वा संस्थापयन्तं वा स्वदते। कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने वाले सातिज्जति॥ का अनुमोदन करता है। ९८.जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाई यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः दीर्घाणि ९८. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ कक्खाण-रोमाई अण्णउत्थिएण वा कक्षारोमाणि अन्ययूथिकेन वा से निर्ग्रन्थी की कक्षाप्रदेश की दीर्घ गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा अगारस्थितेन वा कल्पयेद् वा रोमराजि को कटवाता है अथवा व्यवस्थित संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं वा करवाता है और कटवाने अथवा व्यवस्थित संठवावेंतं वा सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। करवाने वाले का अनुमोदन करता है। ९९. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाई मंसु- यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः दीर्घाणि रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण श्मश्रुरोमाणि अन्ययूथिकेन वा वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, अगारस्थितेन वा कल्पयेद् वा कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा संस्थापये वा, कल्पयन्तं वा सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। ९९. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थी की श्मश्रु की दीर्घ रोमराजि को कटवाता है अथवा व्यवस्थित करवाता है और कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने वाले का अनुमोदन करता है। दन्त-पदम् दंत-पदं १००. जे निग्गंथे निग्गंथीए दंते अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आघंसावेज्ज वा पघंसावेज्ज वा, यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः दन्तान् अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा आघर्षयेद् वा प्रघर्षयेद् वा, आघर्षयन्तं दंत-पद १००. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थी के दांतों का आघर्षण करवाता है अथवा प्रघर्षण करवाता है और आघर्षण
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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