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________________ निसीहज्झयणं ३७३ २५. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायं या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य कायम अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग- शीतोदकविकृतेन वा उष्णोदकविकृतेन वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा वा उत्क्षालयेद् वा प्रधावयेद् वा, पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा उत्क्षालयन्तं वा प्रधावयन्तं वा स्वदते। पधोवावेंतं वा सातिज्जति॥ उद्देशक १७ : सूत्र २५-३० २५. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ के शरीर का प्रासुक शीतल जल अथवा प्रासुक उष्ण जल से उत्क्षालन करवाती है अथवा प्रधावन करवाती है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करवाने वाली का अनुमोदन करती है। २६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायं या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य कायम् अण्णउत्थिएण वा गारस्थिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा फुमावेज्ज वा रयावेज्जवा, फुमातं 'फुमावेज्ज' (फूत्कारयेद्) वा रञ्जयेद् वारयातं वा सातिज्जति॥ वा, 'फुमातं' (फूत्कारयन्तं) वा रञ्जयन्तं वा स्वदते। २६. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ के शरीर पर फूंक दिलवाती है अथवा रंग लगवाती है और फूंक दिलवाने अथवा रंग लगवाने वाली का अनुमोदन करती है। वण-परिकम्म-पदं व्रणपरिकर्म-पदम् व्रणपरिकर्म-पद २७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्यसि __ या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य काये व्रणम् २७. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा से निर्ग्रन्थ के शरीर पर हुए व्रण का वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज आमार्जयेद् वा प्रमार्जयेद् वा, आमार्जन करवाती है अथवा प्रमार्जन वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा आमार्जयन्तं वा प्रमार्जयन्तं वा स्वदते। करवाती है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन सातिज्जति॥ करवाने वाली का अनुमोदन करती है। २८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति॥ या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य काये व्रणम् अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा संवाहयेद् वा परिमर्दयेद् वा, संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते । २८. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ के शरीर पर हुए व्रण का संबाधन करवाती है अथवा परिमर्दन करवाती है और संबाधन अथवा परिमर्दन करवाने वाली का अनुमोदन करती है। २९. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्यसि __ या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य काये व्रणम् वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा तैलेन वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा वा घृतेन वा वसया वा नवनीतेन वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा अभ्यञ्जयेद् वा म्रक्षयेद् वा, मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा अभ्यञ्जयन्तं वा म्रक्षयन्तं वा स्वदते। मक्खावेंतं वा सातिज्जति॥ २९. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ के शरीर पर हुए व्रण का तैल, घृत, वसा अथवा मक्खन से अभ्यंगन करवाती है अथवा म्रक्षण करवाती है और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करवाने वाली का अनुमोदन करती है। ३०. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य काये व्रणम् ३०. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा से निर्ग्रन्थ के शरीर पर हुए व्रण पर लोध, वा लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण लोभ्रेण वा कल्केन वा चूर्णेन वा वर्णेन वा कल्क, चूर्ण अथवा वर्ण का लेप करवाती वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उल्लोलयेद् वा उद्वर्तयेद् वा, है अथवा उद्वर्तन करवाती है और लेप उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तयन्तं वा स्वदते। अथवा उद्वर्तन करवाने वाली का उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति॥ अनुमोदन करती है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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