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________________ निसीहज्झयणं ३३७ उद्देशक १५ : सूत्र १४२-१४७ अच्छि -पदं अक्षि-पदम् अक्षि-पद १४२. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १४२. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो अच्छीणि आमज्जेज्ज वा अक्षिणी आमृज्याद् वा प्रमृज्याद् वा, आंखों का आमार्जन करता है अथवा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा आमाजन्तं वा प्रमार्जन्तं वा स्वदते। प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा पमज्जंतं वा सातिज्जति॥ प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है। १४३. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १४३. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो अच्छीणि संवाहेज्ज वा अक्षिणी संवाहयेद् वा परिमर्दयेद् वा, आंखों का संबाधन करता है अथवा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते। परिमर्दन करता है और संबाधन अथवा पलिमहेंतं वा सातिज्जति॥ परिमर्दन करने वाले का अनुमोदन करता १४४. जे भिक्खू विभूसावडियाए । यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः अप्पणो अच्छीणि तेल्लेण वा घएण अक्षिणी तैलेन वा घृतेन वा वसया वा वा वसाए वा णवणीएण वा नवनीतेन वा अभ्यज्याद् वा म्रक्षेद् वा, अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अभ्यञ्जन्तं वा म्रक्षन्तं वा स्वदते। अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति॥ १४४. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी आंखों का तेल, घृत, वसा अथवा मक्खन से अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण करता है और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने वाले का अनुमोदन करता है। १४५. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १४५. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो अच्छीणि लोद्धेण वा अक्षिणी लोध्रेण वा कल्केन वा चूर्णेन वा । आंखों पर लोध, कल्क, चूर्ण अथवा वर्ण कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा वर्णेन वा उल्लोलयेद् वा उद्वर्तेत वा, का लेप करता है अथवा उद्वर्तन करता है उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, ___ उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तमानं वा स्वदते । और लेप अथवा उद्वर्तन करने वाले का उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा अनुमोदन करता है। सातिज्जति॥ १४६. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १४६. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो अच्छीणि सीओदग- अक्षिणी शीतोदकविकृतेन वा आंखों का प्रासुक शीतल जल अथवा वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा प्रासुक उष्ण जल से उत्क्षालन करता है उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं अथवा प्रधावन करता है और उत्क्षालन उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा वा स्वदते । अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन सातिज्जति॥ करता है। १४७. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १४७. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प अपनी अप्पणो अच्छीणि फुमेज्ज वा रएज्ज अक्षिणी 'फुमेज्ज' (फूत्कुर्याद) वा रजेद् आंखों पर फूंक देता है अथवा रंग लगाता वा, फुमेंतं वा रएंतं वा सातिज्जति॥ वा, 'फुमेंतं' (फूत्कुर्वन्तं) वा रजन्तं वा ' है और फूंक देने अथवा रंग लगाने वाले का स्वदते। अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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