SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निसीहज्झयणं २९. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा धाउं पवेदेति, पवेदेंतं वा सातिज्जति॥ २७९ उद्देशक १३: सूत्र २९-३९ यो भिक्षुः अन्ययूथिकानां वा २९. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ को अगारस्थितानां वा धातुं प्रवेदयति, धातु का कथन करता है अथवा कथन करने प्रवेदयन्तं वा स्वदते। वाले का अनुमोदन करता है। ३०. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा यो भिक्षुः अन्ययूथिकानां वा ३०. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ को गारत्थियाण वा णिहिं पवेदेति, अगारस्थितानां वा निधिं प्रवेदयति, निधि का कथन करता है अथवा कथन पवेदेंतं वा सातिज्जति॥ प्रवेदयन्तं वा स्वदते। करने वाले का अनुमोदन करता है। अप्पाणं देहति-पदं ३१. जे भिक्खू मत्तए अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति॥ आत्मानं पश्यति-पदम् आत्मदर्शन-पद यो भिक्षुः अमत्रके आत्मानं पश्यति, ३१. जो भिक्षु मात्रक में स्वयं को देखता है पश्यन्तं वा स्वदते। अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता है। ३२. जे भिक्खू अदाए अप्पाणं देहति, यो भिक्षुः 'अदाए' आत्मानं पश्यति, ३२. जो भिक्षु दर्पण में स्वयं को देखता है देहंतं वा सातिज्जति॥ पश्यन्तं वा स्वदते। अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता है। ३३. जे भिक्खू असीए अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः असौ आत्मानं पश्यति, पश्यन्तं वा स्वदते। ३३. जो भिक्षु तलवार में स्वयं को देखता है अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता है। ३४. जे भिक्खू मणीए अप्पाणं देहति, यो भिक्षुः मणौ आत्मानं पश्यति, पश्यन्तं देहंतं वा सातिज्जति॥ वा स्वदते। ३४. जो भिक्षु मणि में स्वयं को देखता है अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता है। ३५.जे भिक्खू उडुपाणे अप्पाणं देहति, यो भिक्षुः ‘उड्डपाणे' आत्मानं पश्यति, ३५. जो भिक्षु कुंडे के पानी में स्वयं को देखता देहंतं वा सातिज्जति॥ पश्यन्तं वा स्वदते। है अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता ३६. जे भिक्खू तेल्ले अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति ।। यो भिक्षुः तैले आत्मानं पश्यति, पश्यन्तं वा स्वदते। ३६. जो भिक्षु तेल में स्वयं को देखता है अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता है। ३७.जे भिक्खू फाणिए अप्पाणं देहति, यो भिक्षुः फाणिते आत्मानं पश्यति, ३७. जो भिक्षु फाणित में स्वयं को देखता है देहतं वा सातिज्जति॥ पश्यन्तं वा स्वदते। अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता है। ३८. जे भिक्खू वसाए अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः वसायाम् आत्मानं पश्यति, ३८. जो भिक्षु वसा में स्वयं को देखता है पश्यन्तं वा स्वदते। 'अथवा देखने वाले का अनुमोदन करता चिकित्सा-पदम् तिगिच्छा-पदं ३९. जे भिक्खू वमणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः वमनं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते। चिकित्सा-पद ३९. जो भिक्षु वमन करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy