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टिप्पण
१. सूत्र १,२
रहता। प्रस्तुत सूत्रद्वयी में कारुण्य की प्रतिज्ञा करुणा भाव से त्रस- २. लोगों में अवर्णवाद होता है। प्राणियों को घास, मूंज, काठ आदि के पाश (बन्धन) से बांधने ३. उत्तरगुण के प्रत्याख्यान का भंग करते-करते उसकी चेतना तथा उन बन्धनों से बंधे हुए प्राणियों को खोलने का प्रायश्चित्त ___इतनी मूढ़ हो जाती है कि वह प्रसंगवश मूलगुणों का प्रत्याख्यान भी प्रज्ञप्त है। भिक्षु मुधाजीवी होता है-संयम-निर्वाह हेतु निःस्वार्थ तोड़ देता है। भाव से जीता है। गृहस्थ अथवा अन्य असंयत त्रस प्राणियों के प्रति ४. जैसी प्रतिज्ञा करता है, वैसा आचरण नहीं करता। अतः करुणा कर गृहस्थ-प्रायोग्य कार्य करना उसकी श्रमणचर्या के प्रतिकूल माया लगती है।
५. कथनी-करनी में विषमता से मृषावाद का दोष लगता है। बछड़े, गाय, भेंस आदि को बांधते समय वह प्राणी उसे सींग, ६. प्रत्याख्यान का भंग करने से संयमविराधना होती है। खुर आदि से चोट पहुंचा सकता है, अतिगाढ़ बंधन से बांध दिए ७. प्रमत्त को देवता छल लेते हैं-क्षिप्तचित्त आदि कर देते हैं, जाएं तो तड़फड़ाते हुए स्वयं मर जाते हैं अथवा अन्य प्राणियों को फलतः आत्मविराधना भी संभव है। मार देते हैं। इस प्रकार आत्मविराधना एवं संयमविराधना की संभावना भाष्यकार के अनुसार अभीक्ष्ण का अर्थ तृतीय बार से है। एवं प्रवचन की अप्रभावना को देखते हुए उन्हें बांधना प्रतिषिद्ध है। अतः उसमें चतुर्लघु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
बंधे हुए प्राणियों को अनुकम्पापूर्वक खोल दिया जाए और वे ३. सूत्र ४ प्राणी बन्धन-मुक्त होकर छह जीवनिकाय की हिंसा करे, उन्हें कोई प्रस्तुत आगम के दसवें उद्देशक में अनन्तकाय-संयुक्त आहार चोर चुरा ले जाए, वे कुएं अथवा किसी गड्डे आदि में गिर जाए-इत्यादि करने का गुरुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। प्रस्तुत सूत्र में दोषों के कारण प्राणियों के बंधन को खोलना भी प्रायश्चित्तार्ह कार्य परित्तकाय-प्रत्येककाय-संयुक्त अशन, पान आदि का आहार करने
का प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। उन्मिश्रदोष से दूषित आहार को ग्रहण करने यदि गृहस्थ उन्हें इस प्रकार के किसी सावध कार्य के से अहिंसा महाव्रत की विराधना होती है। नमक, सचित्त पुष्प, पत्र लिए निवेदन भी करे तो वह उन्हें स्पष्ट कह दे-हम तुम्हारे घर अथवा लवंग आदि मिला देने से अशन, पान आदि का स्वाद बढ़ में भाजनभूत (बर्तन की तरह) सब व्यापारों से निवृत्त होकर रहेंगे। जाता है, रसासक्ति से मात्रातिरिक्त खाने पर आत्मविराधना की हम अपने ध्यान में रहते हुए गृहस्थ के कार्यों के प्रति अद्रष्टा- संभावना रहती है। चौवन अनाचारों की सूचि में चौदह अनाचार अश्रोता हैं।
सचित्त वस्तुओं के ग्रहण से सम्बन्धित हैं। २. सूत्र ३
४. सूत्र ५ प्रत्याख्यान का बारम्बार भंग करना शबलदोष है, इससे संयम स्थविरभूमिप्राप्त स्थविर चर्म, छत्र, दण्ड आदि धारण करते चितकबरा हो जाता है। जानते हुए प्रत्याख्यान का भंग करने से थे। चर्म के दो प्रकार होते हैं-सलोम और निर्लोम । सलोम चर्म मुख्यतः सात दोष आते हैं
शुषिर होता है। उसके रोओं के भीतर प्राणियों के सम्मूछेन की १. प्रत्याख्यान का भंग करने वाले के प्रति विश्वास नहीं संभावना रहती है। वर्षाकाल में उसके जीवसंसक्त होने का भय
१. निभा. गा. ३९८१ २. वही, गा. ३९८२ (सचूर्णि) ३. वही, गा. ३९७८, ३९७९ ४. दसाओ २/७ ५. निभा. गा. ३९८८ सचूर्णि
६. वही, गा. ३९८७-सुत्तणिवातो ततिए। ७. निसीह. १०/५ ८. निभा. गा. ३९९२, ३९९३ ९. दसवे. अध्य. ३ का आमुख। १०. वव.८/५