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________________ निसीहज्झयणं २३५ पधोएतं वा उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं वा स्वदते। उच्छोलेंतं वा सातिज्जति॥ उद्देशक ११: सूत्र ५०-५५ अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है। ५०. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा उढे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः अन्ययूथिकस्य वा अगारस्थितस्य वा ओष्ठौ 'फुमेज्ज' (फूत्कुर्याद्) वा रजेद् वा, 'फुतं' (फूत्कुर्वन्तं) वा रजन्तं वा स्वदते । ५०. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ के ओष्ठ पर फूंक देता है अथवा रंग लगाता है और फूंक देने अथवा रंग लगाने वाले का अनुमोदन करता है। दीह-रोम-पदं दीर्घरोम-पद ५१. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाइं उत्तरो?- रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति॥ दीर्घरोम-पदम् यो भिक्षुः अन्ययूथिकस्य वा अगारस्थितस्य वा दीर्घाणि उत्तरौष्ठरोमाणि कल्पेत वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते। ५१. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ के उत्तरोष्ठ की दीर्घ रोमराजि को काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। ५२. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा यो भिक्षुः अन्ययूथिकस्य वा ५२. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ की गारत्थियस्स वा दीहाइंणासा-रोमाई अगारस्थितस्य वा दीर्घाणि नासारोमाणि नाक की दीर्घ रोमराजि को काटता है कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा कल्पेत वा संस्थापयेद्वा, कल्पमानं वा अथवा व्यवस्थित करता है और काटने संठवेंतं वा सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। अच्छि -पत्त-पदं ५३. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाइं अच्छिपत्ताई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति॥ अक्षिपत्र-पदम् अक्षिपत्र-पद यो भिक्षुः अन्ययूथिकस्य वा ५३. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ के अगारस्थितस्य वा दीर्घाणि अक्षिपत्राणि दीर्घ अक्षिपत्र (पलक की रोमराजि) को कल्पेत वा संस्थापयेद्वा, कल्पमानं वा काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और संस्थापयन्तं वा स्वदते। काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। अच्छि -पदं अक्षि-पद ५४. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छीणि आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति॥ अक्षि-पदम् यो भिक्षुः अन्ययूथिकस्य वा अगारस्थितस्य वा अक्षिणी आज्याद् वा प्रमृज्याद्वा, आमाजन्तं वा प्रमार्जन्तं वा स्वदते। ५४. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ की आंखों का आमार्जन करता है अथवा प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है। ५५. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा यो भिक्षुः अन्ययूथिकस्य वा ५५. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ की गारत्थियस्स वा अच्छीणि संवाहेज्ज अगारस्थितस्य वा अक्षिणी संवाहयेद्वा आंखों का संबाधन करता है अथवा वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा परिमर्दयेद्वा , संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं परिमर्दन करता है और संबाधन अथवा
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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