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निसीहज्झयणं
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उद्देशक ९ : टिप्पण २५. वर्षधर-अन्तःपुर रक्षक षण्ढ ।'
के कारण उन दासियों के नाम बर्बरी, बकुशी, यवनी आदि हैं-ऐसा २६. कंचुकी-अन्तःपुरिका को राजा के समीप लाने ले जाने ज्ञातव्य है। राजकुमारों को अनेक देशों की भाषा एवं संस्कृति से वाला।
परिचित कराने हेतु अनेक परिचारिकाएं रहती थीं। राजघरानों में २७. द्वारपाल-विशिष्ट सूचनाएं देने वाला।
विदेशी दासियों का रहना गौरव एवं समृद्धि का सूचक माना जाता २८. दंडारक्षिक-राजा की आज्ञा से स्त्री-पुरुषों को अन्तःपुर था। नानादेशीय सेविकाओं के कारण अपने देश की शोभा बढ़ती में प्रवेश आदि देने वाले।
है-ऐसी धारणा थी। अन्य आगमों में भी अठारह देशीय दासियों २९. खुज्जा......पारसी-ये इक्कीस प्रकार की दासियां हैं। का उल्लेख मिलता है। प्राचीन आगमेतर साहित्य तथा महाभारत इनमें कुब्जा', वामनी एवं वडभी को छोड़कर शेष पृथक्-पृथक् आदि अन्य ग्रन्थों में भी यवन, पुलिंद, बर्बर आदि का उल्लेख देशों से सम्बद्ध हैं। बर्बर, बकुश, यवन आदि देशों से संबद्ध होने उपलब्ध होता है।
१. निभा. भा. २, चू.पू. ४५२-वरिसधरा जेसि जातमेत्ताण चेव
दोभाउयाच्छेज्जं दाऊणं गालिया ते वड़िता। जातमेत्ताण चेव जेसिं
मेलितेहिं चोतिआ ते चिप्पिसा। २. वही-रण्णो आणत्तीए अंतेपुरियसमीवं गच्छंति, अंतपुरियाणत्तीए
वारण्णो समीवं गच्छंति ते कंचुइया। ३. वही-दोवारिया दारे चेव णिविट्ठा रक्खंति।
४. वही-दंडगहियग्गहत्थो सव्वतो अंतेपुरं रक्खइ। रण्णो वयणेण इत्थिं
पुरिसंवा अंतेपुरं णीणेति पवेसेति, एस दंडारक्खितो। ५. वही, पृ. ४७०-शरीरवक्रा खज्जा । ६. वही-पट्ठी कुज्जागारा णिग्गता वडभं। ७. वही-सेसा विसयाभिहाणेहिं वत्तव्यं ।
णाया. १/८२ का टिप्पण।