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उद्देशक ७ : टिप्पण
४. परिस्स - परिष्वजन-उपगूहन करना ।
५. परिचुंब - चुम्बन करना, मुख से चूमना ।
११. सूत्र ८६ - ९२
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निसीहज्झयणं
पान आदि तथा वस्त्र पात्रादि के दान एवं ग्रहण, सूत्रार्थ के दान एवं ग्रहण तथा इन्द्रिय-विशेष के द्वारा संकेत आकारकरण के पीछे अब्रह्म का भाव निहित है, अतः इनका प्रायश्चित अनुद्घातिक चातुर्मासिक है।
प्रस्तुत उद्देशक के अन्य सूत्रों के समान इन सूत्रों में भी अशन,
१. निभा. भा. २ चू. पृ. ४११ - उपगूहनं परिष्वजनं ।
२. वही मुखेन चम्बनं ।