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निसीहज्झयणं
५२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स उट्ठे सीओदग वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।।
५३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स उट्ठे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुर्मेतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥
दीह - रोम-पदं
५४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स दीहाई उत्तरो-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेंतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥
५५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स दीहाई णासा- रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।।
अच्छि-पत्त-पदं
५६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स दीहाई अच्छि - पत्ताइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेंतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥
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यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य ओष्ठौ शीतोदकविकृतेन वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं वा स्वदते ।
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य ओष्ठौ 'फुमेज्ज' (फूत्कुर्याद्) वा रजेद् वा, 'फुमेंतं' (फूत्कुर्वन्तं) वा रजन्तं वा स्वदते ।
दीर्घरोम-पदम्
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य दीर्घाणि उत्तरौष्ठरोमाणि कल्पेत वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते ।
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य दीर्घाणि नासारोमाणि कल्पेत वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते ।
अक्षिपत्र-पदम्
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुन प्रतिज्ञया अन्योन्यस्य दीर्घाणि अक्षिपत्राणि कल्पे वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते ।
उद्देशक ७ : सूत्र ५२-५६
५२. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म- सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के ओष्ठ का प्राक शीतल जल अथवा प्रासुक उष्ण जल से उत्क्षालन करता है। अथवा प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है।
५३. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के ओष्ठ पर फूंक देता है अथवा रंग लगाता है और फूंक देने अथवा रंग लगाने वाले का अनुमोदन करता है।
दीर्घरोम - पद
५४. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के उत्तरोष्ठ की दीर्घ रोमराजि को काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है।
५५. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के नाक की दीर्घ रोमराज को काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है।
अक्षिपत्र - पद
५६. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के दीर्घ अक्षिपत्रों को काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है ।