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________________ उद्देशक ७: सूत्र २४-२९ निसीहज्झयणं १४९ २४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- __ यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए अण्णमण्णस्स कार्य ___ अन्योन्यस्य कायं शीतोदकविकृतेन वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग- उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा स्वदते । वा सातिज्जति॥ २४. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से एक दूसरे भिक्षु के शरीर का प्रासुक शीतल जल अथवा प्रासुक उष्ण जल से उत्क्षालन करता है अथवा प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है। २५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अण्णमण्णस्स कार्य फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य कायं 'फुमेज्ज' (फूत्कुर्याद्) वा रजेद् वा, 'फुतं' (फूत्कुर्वन्तं) वा रजन्तं वा स्वदते। २५. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से एक दूसरे भिक्षु के शरीर पर फूंक देता है अथवा रंग लगाता है और फूंक देने अथवा रंग लगाने वाले का अनुमोदन करता है। वण-परिकम्म-पदं व्रणपरिकर्म-पदम् २६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं अन्योन्यस्य काये व्रणम् आमृज्याद् वा आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, प्रमृज्याद्वा, आमाजन्तं वा प्रमार्जन्तं वा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा स्वदते। सातिज्जति॥ व्रणपरिकर्म-पद २६. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से एक दूसरे भिक्षु के शरीर पर हुए व्रण का आमार्जन करता है अथवा प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है। २७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया २७. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं ___ अन्योन्यस्य काये व्रणं संवाहयेद् वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, परिमर्दयेद्वा, संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं भिक्षु के शरीर पर हुए व्रण का संबाधन संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा वा स्वदते । करता है अथवा परिमर्दन करता है और सातिज्जति॥ संबाधन अथवा परिमर्दन करने वाले का अनुमोदन करता है। २८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए अण्णमण्णस्स कार्यसि वणं अन्योन्यस्य काये व्रणं तैलेन वा घृतेन वा तेल्लेण वा घएण वा वासाए वा वसया वा नवनीतेन वा अभ्यञ्ज्याद् वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा म्रक्षेद् वा, अभ्यञ्जन्तं वा म्रक्षन्तं वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं स्वदते। वा सातिज्जति॥ २८. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के शरीर पर हुए व्रण का तैल, घृत, वसा अथवा मक्खन से अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण करता है और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने वाले का अनुमोदन करता है। २९. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य काये व्रणं लोध्रेण वा कल्केन वा चूर्णेन वा वर्णेन वा उल्लोलयेद् वा २९. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के शरीर पर हुए व्रण पर लोध, कल्क,
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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