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________________ निसीहज्झयणं कामकलह-पदं १२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए कलहं कुज्जा, कलहं बूया, कलह - वडिया गच्छति, गच्छंतं वा सातिज्जति ॥ लेह-पदं १३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए लेहं लिहति, लेहं लिहावेति, लेह वडियाए वा गच्छति गच्छंतं वा सातिज्जति ॥ पोसंतपित-पदं १४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए पोसंतं वा पिट्ठतं वा भल्लायएण उप्पाएति, उप्पाएंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए पोसंतं वा पिट्ठतं वा भल्लायएण उप्पाएत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए पोसंतं वा पिट्ठतं वा भल्लायएण उप्पाएत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेज्ज वा विलिपेज्ज वा, आलिपेंतं वा विलिपेंतं वा सातिज्जति ।। १२३ कामकलह-पदम् यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया कलहं कुर्यात्, कलहं ब्रूयात्, कलहप्रतिज्ञया गच्छति, गच्छन्तं वा स्वदते । लेख-पदम् यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया लेख लिखति, लेखं लेखयति, लेखप्रतिज्ञया वा गच्छति, गच्छन्तं वा स्वदते । पोषान्त- पृष्ठान्त-पदम् यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया पोषान्तं वा पृष्ठान्तं वा भल्लातकेन उत्पाचयति, उत्पाचयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया पोषान्तं वा पृष्ठान्तं वा भल्लातकेन उत्पाच्य शीतोदकविकृतेन वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया पोषान्तं वा पृष्ठान्तं वा भल्लातकेन उत्पाच्य शीतोदकविकृतेन वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षाल्य वा प्रधाव्य वा अन्यतरेण आलेपनजातेन आलिम्पेद् वा विलिम्पेद् वा, आलिम्पन्तं वा विलिम्पन्तं वा स्वद उद्देशक ६ : सूत्र १२-१६ कामकलह-पद १२. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म- सेवन के संकल्प से कलह करता है, कलह करने को कहता है, कलह देखने की प्रतिज्ञा से जाता है अथवा जाने वाले का अनुमोदन करता है। लेख- पद १३. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म सेवन के संकल्प से लेख लिखता है, लेख लिखवाता है, लेख लिखने के संकल्प से अन्यत्र जाता है अथवा जाने वाले का अनुमोदन करता है।" पोषान्त - पृष्ठान्त - पद १४. जो भिक्षु अब्रह्म- सेवन के संकल्प से स्त्री की योनि अथवा अपानद्वार को भिलावा से उत्पक्व बनाता है अथवा उत्पक्व बनाने वाले का अनुमोदन करता है। १५. जो भिक्षु अब्रह्म सेवन के संकल्प से स्त्री की योनि अथवा अपानद्वार को भिलावा से उत्पक्व बना कर, प्राक शीतल जल अथवा प्रासु उष्ण जल से उसका उत्क्षालन करता है अथवा प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है। १६. जो भिक्षु अब्रह्म सेवन के संकल्प से स्त्री की योनि अथवा अपानद्वार को भिलावा से उत्पक्व बना कर, प्राक शीतल जल अथवा प्रासु उष्ण जल से उत्क्षालन अथवा प्रधावन कर किसी आलेपनजात से उसका आलेपन करता है अथवा विलेपन करता है और आलेपन अथवा विलेपन करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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