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________________ उद्देशक ४ : सूत्र ४३-५१ ४३. जे भिक्खू सव्वारक्खियं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं सातिज्जति ॥ वा अच्चीकरण-पदं ४४. जे भिक्खू गामारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्खू देसारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू सीमारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ४७. जे भिक्खू रण्णारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ४८. जे भिक्खू सव्वारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ अत्थीकरण-पदं ४९. जे भिक्खू गामारक्खियं अत्थीकरेति, अत्थीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ५०. जे भिक्खू देसारक्खियं अत्थीकरेति, अत्थीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ५१. जे भिक्खू सीमारक्खियं अत्थीकरेति, अत्थीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ७८ यो भिक्षुः सर्वारक्षितम् आत्मीकरोति, आत्मीकुर्वन्तं वा स्वदते । अर्चीकरण-पदम् यो भिक्षुः ग्रामारक्षितम् अर्चीकरोति, अर्चीकुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः देशारक्षितम् अर्चीकरोति, अर्चीकुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सीमारक्षितम् अर्चीकरोति, अर्चीकुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः अरण्यारक्षितम् अर्चीकरोति, अर्चीकुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सर्वारक्षितम् अर्चीकरोति, अर्चीकुर्वन्तं वा स्वदते । अर्थीकरण-पदम् यो भिक्षुः ग्रामारक्षितम् अर्थीकरोति, अर्थीकुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः देशारक्षितम् अर्थीकरोति, अर्थीकुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः सीमारक्षितम् अर्थीकरोति, अर्थीकुर्वन्तं वा स्वदते । निसीहज्झयणं ४३. जो भिक्षु सर्वआरक्षक के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है अथवा सम्बन्ध स्थापित करने वाले का अनुमोदन करता है। अर्चीकरण-पद ४४. जो भिक्षु ग्राम के आरक्षक की अर्चा करता है अथवा अर्चा करने वाले का अनुमोदन करता है। ४५. जो भिक्षु देश के आरक्षक की अर्चा करता है अथवा अर्चा करने वाले का अनुमोदन करता है । ४६. जो भिक्षु सीमा के आरक्षक की अर्चा करता है अथवा अर्चा करने वाले का अनुमोदन करता है। ४७. जो भिक्षु अरण्य के आरक्षक की अर्चा करता है अथवा अर्चा करने वाले का अनुमोदन करता है। ४८. जो भिक्षु सर्वआरक्षक की अर्चा करता है अथवा अर्चा करने वाले का अनुमोदन करता है । अर्थीकरण पद ४९. जो भिक्षु (अपना विद्यातिशय प्रदर्शित कर) ग्राम के आरक्षक को अपना प्रार्थी बनाता है अथवा प्रार्थी बनाने वाले का अनुमोदन करता है। ५०. जो भिक्षु (अपना विद्यातिशय प्रदर्शित कर) देश के आरक्षक को अपना प्रार्थी बनाता है अथवा प्रार्थी बनाने वाले का अनुमोदन करता है। ५१. जो भिक्षु (अपना विद्यातिशय प्रदर्शित कर) सीमा के आरक्षक को अपना प्रार्थी बनाता है अथवा प्रार्थी बनाने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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