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भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
अक्षररूप भाषात्मक शब्द है और पशुपक्षियोंकी टें टें, मैं-मैं अनक्षर रूप भाषात्मक शब्द हैं । अभाषा रूप शब्द के दो भेद हैं- प्रायोगिक और स्वाभाविक । जो शब्द पुरुष प्रयत्नसे उत्पन्न होता है उसे प्रायोगिक और जो बिना पुरुष प्रयत्नके मेघादिकी गर्जनासे होता है उसे स्वाभाविक कहते हैं । प्रायोगिकके चार भेद हैं-तत, वितत, घन और सुषिरा चमड़ेको मढ़कर ढोल, नगारे आदिका जो शब्द होता है, वह तत है । सितार, पियानो और तानपुरा आदिके शब्दको वितत घण्टा, झालर आदिके शब्दको घन एवं वाँसुरी, शंख आदिके शब्दको सुषिर कहते हैं ।
उपसंहार
जैन दर्शन में शब्दको महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । इसके बिना प्रमा ही संभव नहीं तथा सर्वज्ञ वचनोंकी प्रमाणताके अभाव में आगम भी प्रमाण नहीं हो सकेगा । शब्दको जैन दार्शनिकोंने आकाश गुण नहीं माना है, प्रत्युत पौद्गलिक सिद्ध किया है । शब्दकी सिद्धि अनेकान्तके द्वारा मानी है । पूज्यपादने अपने व्याकरणके आरम्भ में— 'सिद्धिरनेकान्तात् ' सूत्र लिखा है, जिसकी वृत्ति लिखते हुए सोमदेवने बतलाया है - "सिद्धिः शब्दानां निष्पत्तिर्ज्ञाप्तिर्वा भवत्यनेकान्तात्, अस्तित्व - नास्तित्वत्य नित्यत्वानित्व विशेषणविशेष्याद्यात्मकत्वात् दृष्टेष्टप्रमाणाविरुद्धत्वात् अर्थात् शब्दोंकी सिद्धि अनेकान्तके द्वारा हो सकती है । अतः प्रत्येक शब्द में नित्यत्व अनित्यत्व, अस्तित्व, नास्तित्व, विशेषण, विशेष्यत्व आदि अनेक विरोधी और अविरोधी धर्म पाये जाते हैं । जैन दर्शन शब्दके अर्थ विकास प्रसारमें स्वाभाविक योग्यताको ही कारण मानता है; परन्तु देश, काल आदिके प्रभाव के कारण शब्दके अर्थमें उत्तरोत्तर विस्तार होता रहता है । विद्यानन्द स्वामीने पुद्गल स्कन्ध रूप शब्दकी सिद्धि संक्षेपमें निम्न प्रकार की है
न शब्दः खगुणो बाह्यकरणज्ञानगोचरः । सिद्धो गंधादिवन्नैव सोमूर्तद्रव्यमप्यतः ॥ न स्फोटात्मापि तस्यैव स्वभावस्याप्रतीतितः ।
शब्दात्मनस्सदा नाना स्वभावस्यावभासनात् ॥
अन्तःप्रकाशरूपस्तु शब्दे स्फोटो परे ध्वनिः । यथार्थगतिहेतुः स्यात्तथा गंधादितोपरः ॥ बन्धरूपरसस्पर्शः स्फोटः किं नोपगम्यते । तत्राक्षेपसमाधान समत्वात्सर्वथार्थतः ॥
अत: जैन दर्शनने शब्दको आकाश गुण न मानकर पौद्गलिक माना है तथा शब्द और अर्थका कथञ्चित् तादात्म्य सम्बन्ध सिद्ध किया है । स्फोट द्वारा अर्थबोध नहीं होता है, क्योंकि वर्ण, ध्वनि, पद और वाक्यका स्फोट किसी भी दशामें सम्भव नहीं ।