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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
संसारसे सम्बन्ध रहने के कारण व्यक्तिमें आध्यात्मिकता अधिक रहती है । इस लिये व्यक्तिका सम्बन्ध वास्तविक अर्थात् बाह्य संसारसे न रहकर आन्तरिक संसारसे रहता है, अतः स्वप्नके द्वारा भावी जीवनकी घटनाओंकी सूचना मिलती है । स्वप्नसे ही मानव जीवन में पूर्णता आती है । अतएव स्वप्नोंको भविष्यकी सूचना देनेवाले मानना चाहिये ।
प्राच्य विचारधाराको सुविधाके ख्यालसे विचार करनेके लिये प्रधानतया तीन भागोंमें बाँट सकते है-(१) दार्शनिक धिचारधारा (२) आयुर्वेदिक विचारधारा और (३) ज्योतिषिक विचारधारा। दार्शनिक विचारधाराकी तीन उपधाराएँ है-(१) जैन, (२)बौद्ध और (३) वैदिक ।
जैन वर्शन-जैन मान्यतामें स्वप्न संचित कर्मोके अनुसार घटित होने वाले शुभाशुभ फलके द्योतक हैं। स्वप्नशास्त्रोंके अध्ययनसे स्पष्ट अवगत हो जाता है कि कर्मबद्ध प्राणी मात्रकी क्रियाएँ सांसारिक जीवोंको उनके भूत और भावी जीवनको सूचना देती हैं। स्वप्न का अन्तरंग कारण ज्ञानावरणी, दर्शना वरणी और अन्तरायके क्षयोपशमके साथ मोहनीयका उदय है । जिस व्यक्तिके जितना इन कर्मोंका क्षयोपशम होगा उस व्यक्तिके स्वप्नों का फल भी उतना ही अधिक सत्य निकलेगा। तीव्र कर्मोंके उदय वाले व्यक्तियोंके स्वप्न निरर्थक एवं सारहीन होते हैं, इसका मुख्य कारण है कि सुषुप्तावस्था में भी आत्मा तो जागृत ही रहती है केवल इन्द्रियों और मनकी शक्ति विश्राम करने के लिए सुषुप्त-सी हो जाती है। जिसके उपयुक्त कर्माका भयोपशम है उसके क्षयोपशमजन्य इन्द्रिय और मन सम्बन्धी चेतनता या ज्ञानावस्था अधिक रहती है। इसलिये ज्ञानको मात्राको उज्ज्वलतासे निद्रित अवस्थामें जो कुछ देखते हैं, उसका सम्बन्ध हमारे भूत, वर्तमान और भावी जीवनसे है । इसी कारण स्वप्नशास्त्रियोंने स्वप्नको भूत, वर्तमान और भविष्य जीवनका द्योतक बतलाया हैं । पौराणिक अनेक आख्यानोंसे भी यही सिद्ध होता है कि स्वप्न मानव को उसके भावी जीवनमें घटनेवाली घटनाओंकी सूचना देते हैं।
बौदर्शन-बौद्ध मान्यतामें स्वभावतः पदार्थोंके क्षणिक होनेके कारण सुषुप्तावस्थामें भी क्षण-क्षण ध्वंसी आत्माकी ज्ञानसन्तान चलती रहती है, पर इस ज्ञानसन्तानका जीवात्माके ऊपर कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ता है न पूर्व संचित संस्कार ही वस्तुभूत हैं । इसलिये स्वप्नका फल जीवात्मासे कुछ सम्बन्ध नहीं रखता है । केवल शारीरिक विकारके कारण स्वप्न आते हैं, आत्मा स्वप्नसे पृथक् रहती है । बौद्ध ग्रन्थोंके पौराणिक आख्यानोंमें कुछ स्वप्न सम्बन्धो कथायें अवश्य मिलती है, पर दार्शनिकोंने स्वप्नके सम्बन्धमें विचार नहीं किया है ।
वैविक बर्शन--इस मान्यतामें प्रधानतः अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत ये तीन दार्शनिक सिद्धान्त हैं, अवान्तर विचारधाराएँ इन्हीं के अन्तर्गत हैं ।
अत वर्शन--इस मान्यतामें पूर्व और वर्तमान संचित संस्कारोंके कारण जागृत अवस्थामें जिन इच्छाओंकी पूर्ति नहीं होती है, स्वप्नावस्थामें उन्हों इच्छाओंको पूर्ति बताई गई है। स्वप्न आनेका प्रधान कारण अविद्या है, इसलिये स्वप्नका सम्बन्ध अविद्या सम्बद्ध जीवात्मासे है, परमब्रह्मसे नहीं । स्वप्नके फलका प्रभाव जीवात्माके ऊपर पड़ता है, पर यह फल भी मायारूप भ्रान्त है।