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________________ ज्योतिष एवं गणित १८७ दीर्घवृत्त, सूत्रीस्तम्भ, वृत्ताधारवेलन, चापीयत्रिकोणानुपात, कोटिस्पर्श, स्पर्शरेखा, क्षेत्रफल और घनफलके विषयमें मिलता है। जैन बीजगणित-जैन अंकगणितके करणसूत्रोंके साथ बीजगणित सम्बन्धी सिद्धान्त (formulae) व्यापक रूपसे मिलते हैं। जैनाचार्योंने अपनी प्रखर प्रतिभासे "अंकगणितके करणसूत्रोंके साथ बीजगणितके नियमोंको इस प्रकार मिला दिया है कि गणितके साधारण प्रेमी भी बीजक्रियासे परिचित हो सकते हैं। जैन बीजगणितमें एकवर्ण समीकरण, अनेक वर्ण समीकरण, करणी, कल्पितराशियां, समानान्तर, गुणोत्तर, व्युत्क्रम, समानान्तर श्रेणियाँ, क्रम-संचय, घाताङ्क और लधु-घाताङ्क और लघु-गुणकोंके सिद्धान्त तथा द्विपद सिद्धान्त आदि बीजक्रियाएँ हैं। उपर्युक्त बीजगणितके सिद्धान्त धवलाटीका, त्रैलोक्यप्राप्ति, लोकविभाग, अनुयोगद्वारसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, गणितसारसंग्रह और त्रिलोकसार आदि ग्रन्थोंमें फुटकर रूपमें मिलते हैं। धवलामें बड़ी संख्याओंको सूक्ष्मतासे व्यक्त करनेके लिये घाता-नियम (वर्ग-संवर्ग) का कथन किया गया है । बीजक्रियाजन्य घाताङ्कका सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण और मौलिक है। डॉक्टर अवधेशनारायण "धवला"की चतुर्थ जिल्दकी अंग्रेडी भूमिकामें लिखते हैं "The theory of the indices as described in the Dhavala in Somewhat different from what is found in the mattemntical works. This theory is certainly primitive and is earlier than 500 A. D. The fundamental ideas seem to be those of (i) the Sguare, (ii) the cube (iii) the Successive Square (iv) the Successive cube (v) the raising of a number to itsown power, (vi) the Square root, (vii) the cube root, (viii) the Successive Square root (ix) the Successive crbe root etc." घाताङ्क सिद्धान्तके अनुसार मई को अ के घनका प्रथम वर्गमूल माना जायेगा। धवलाके सिद्धान्तोंके अनुसार उत्तरोत्तर वर्ग और घनमूल निम्नप्रकार सिद्ध होते है अ का प्रथम वर्ग अर्थात् (अ)२ = अरे ,,, द्वितीय वर्ग ,, (अ)२ = अ = अरे ,, ,, तृतीय वर्ग ,, (अ) = अ = अरे ,,, चतुर्थ वर्ग ,, (अ) = अ - अ ,, ,, पंचम वर्ग ,, (अ) = = ,, षष्ठ वर्ग ,, (अ)वृत्त सम्बन्धी इन गणितोंकी जानकारीके लिये देखिये'तिलोयपण्णत्ती' गाथा नं० २५२१, २५२५, २५६१, २५६२, २५६३, २६१७, २६१९, २८१५ से २९१५ तक । 'त्रिलोकसार' गाथा नं० ३०९, ३१०, ३१५, ७६०, ७६१, ७६२, ७६३, ७६४, ७६६ गणितसार एवं गणितसारका क्षेत्राध्याय । 'वाचार्य नेमिचन्द्र और ज्योतिषशास्त्र' शीर्षक निबन्ध भास्कर, भाग ६, किरण २ एवं 'भाचार्य नेमिचन्द्रका गणित' शीर्षक निबन्ध; जैनदर्शन वर्ष ४ अंक १-२
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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